Sunday, November 14, 2010

बोली

थोड़े दिन पहिले बड़ी बिटिया से बात हो रही थी उसे अफ़सोस इस बात का था कि मै जो दो प्रांतीय भाषाए जानती हूँ राजस्थानी और बुन्देलखंडी वो मेरे साथ ही चली जाएंगी । ( मेरे घर से ) ....... अरे ऐसा उसने कहा नहीं बस तात्पर्य ये ही था ।मेरे अलावा किसी कों मेरे घर मे मारवाड़ी जो बोलना नहीं आता । बुन्देलखंडी तो ये भी बोल लेते है पर बच्चे सिर्फ अंग्रेज़ी ही बोलते है इसमे इनका भी कोई दोष नही दक्षिण मे ये ही हाल है सभी बच्चो का ।
इसी से मुझे लगा कि कुछ प्रयोग किये जाए ........ ।
" सुधि " उसीका उदाहरण मात्र है ।
आप माने या ना माने खडी बोली से ज्यादा मिठास प्रांतीय भाषाओ मे है ......
मेरी दो बेटिया विदेश मे है हिंदी छूटने का गम अब नहीं कई हिंदी ब्लोग्स से बेटिया मेरे माध्यम से जुडी है । मारवाड़ी की एक झलक यहाँ दे रही हूँ ।
मेरी एक बहिन की शादी लाडनू एक छोटे गाँव मे हुई थी उन दिनों हम नागौर मे रहते थे । जीजाजी मारवाड़ी ही बोलते थे ।
एक दिन की बात है .......
आगे मारवाड़ी मे ..........

नहीं नहीं करता भी पचास साल पहिले की बात है बी साल ही जीजी कों ब्याह हुयो थो पहली वार
जीजी न लेवान जीजाजी आयोडा हा ।
जीमता समय म ही पुरसगारी कर रही थी जब मै पापड़ आखिरमै लेर गयी तो म्हारस जीजाजी बोल्या सालीजी थोड़ी इन
चुनडी पहनार लाओसा .
मै तो समझी कोनी काई बोल रिया है ।
जीजी जल्दी से पापड़ पर घी डाल ऊपर से लाल मिर्चा बुकनी बुरक दी अन बोली अब लेजाओ ।
पापड़ जब सेक्यो जाव है सिकता ही उबड़ खाबड़ हो जाव है । बी पर अगर पिघ्ल्यो घी डाला तो चारो तरफ फ़ैल जाव ह ऊपर से मिर्ची भी घी के साथ फ़ैल जाव . लाडनू सुजानगढ़ मे पापड यान ही खाव है चाव स अब तो मसाला पापड़ सगला लोग पसंद करवा लाग्या ।घी और बीपर मिर्ची बुर्कोड्यो पापड़ बिलकुल यान ही लाग है कि कोई लाल चुनडी पहना दी हो
आज भी किस्सों याद आव तो हँसी आ जाव है........पापड़ अणि चूनड़ी हा हा हा हा ..........

21 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सच में प्रांतीय भाषायों में बहुत मिठास है......
अर आ मारवाड़ी भासा री बातचीत तो घणी सोवणी
लागी.....

Bharat Bhushan said...

मारवाड़ी तो आवै कोणी पर नोंक-झोंक समझ में पड़ गी.

प्रवीण पाण्डेय said...

भारत के तीन कोनों की मिठास है आपके घर में। बुन्देलखण्डी पूरी समझ में आती है, बोलने में हिचक होती है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मजेदार प्रसंग ...प्रांतीय भाषाओँ में अपनी मिठास है ...आपकी बात अच्छे से समझ आ गयी ...

रश्मि प्रभा... said...

prantiye bhasha ki mithaas ko samajhte hi nahi, apna sa lagta hai , apnatw ka ek sashakt ghera ban jata hai

sangeeta said...

हमारी सभी प्रांतीय भाषाएँ बहुत मीठी हैं ! बहुत अच्छा अनुभव रहा मारवाड़ी पढने का !! एक अलग ब्लॉग क्यों नहीं लिखती आप इन भाषाओँ में !

dipayan said...

सच ही कहा आपने, आजकल, बच्चे तो क्या, हम सब अपनी बोल-चाल मे अंग्रेजी का प्रयोग करने लगे है और अपनी प्रांतीय भाषायों को यँहा तक की अपने देश की भाषा को भी महत्व देना कम कर दिया है ।
आपका लेख पढ़कर अच्छा लगा । मजेदार भी था ।
शुक्रिया ।

soni garg goyal said...

सही कहा है आपने आजकल इन प्रांतीय भाषाओ को आजकल की पीढ़ी नहीं बोलती मेरी मम्मी मारवाड़ी है वो तो ये भाषा पूरी तरह से बोल समझ लेती है लेकिन मेरे पल्ले थोड़ी बहुत ही पढ़ती है !

मनोज कुमार said...

मज़ो आ गयो जी।
आपके साथ क्यों जाएगी।
आप हमें सिखाइए, हम सीखेंगे।

सम्वेदना के स्वर said...

आपके कमेन्ट रोमन में, ब्लॉग हिंदी में, घर पर बातें अंगरेजी में और अब ठेठ मारवाड़ी.. इस मिठास का क्या कहना.. बचपन का एक पसंदीदा गाना याद आ गया.. पलकां माँ बंद करि राखि लूं.. और फिर अपने चार लाइनां वाले सुरेन्द्र शर्मा जी..
सरिता दी.. घनों चोक्यो लाग्यो यो पापड री चुनरी..

रचना दीक्षित said...

जरुरी है प्रांतीय भाषाओँ को सहेजना. अच्छा लगा मारवाड़ी में ये किस्सा पढ़कर

शोभना चौरे said...

घणीसुन्दर लगी आपकी बात \सच अपनापन होता है \ऐसे ही हमारी निमाड़ी बोली है |
आवजो |

पूनम श्रीवास्तव said...

Sahi likha hai apne ---prantiya bhashaon ka apna alag hi mahtva hai.in bhashaon aur boliyon ko hame sahejna hi hoga----.shubhkamnayen.

mridula pradhan said...

marwadi bhasha men padhkar khoob achcha laga.

sm said...

jija and conversation with saliji
very interesting.

Kunwar Kusumesh said...

प्रांतीय भाषाओँ की अपनी उपयोगिता है

दिगम्बर नासवा said...

गज़ब की मिठास है मारवाड़ी भाषा में .... मेरे बहुत से मित्र मारवाड़ी हैं और खाने और भाषा का आनंद लेता रहता हूँ ...

निर्मला कपिला said...

प्राँतिय भाषाओं कास्वाद पापड जैसा ही करारा होता है। आभार। हमारे साथ बाँटने मे।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरजोग दीदी
पगै लागूं !
आप तो राजस्थानी जाणो , आ जाण'र म्हारै हरख अर उमाव रो पार ई नीं रयो सा ।

थे मूळ रूप सूं कठै रा हो ?

साची , आपांरी मारवाड़ी री मिठास रो कोई जोड़ कोनीं ।

…अर आप पापड़ नैं चूनड़ी पहनावण रो किस्सो घणै सांतरै ढंग सूं लिख्या हो । मोकळी बधाई !

पुनः आपको बहुत बहुत बधाई के साथ हार्दिक शुभकामनाएं …

- राजेन्द्र स्वर्णकार

amita said...

LOL !!

papad hi papad khao re

regional languages are very sweet...

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 10/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!