Monday, January 6, 2014

अनुभव




मैंने चुप्पी से

कभी  कभी

शव्दो को मात

खाते  देखा है


बहुत कुछ

जाता है सुधर

जब मौन हो

जाता है मुखर 

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन बहुत कुछ कहता है।

Anonymous said...

सटीक और सार्थक - चुप्पी में भी दम होता है

दिगम्बर नासवा said...

सहमत हूँ आपकी बात से ... बोल देना जरूरी होता है कभी कभी ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मौन के महत्व को बहुत कम लोगों ने समझा है!!

Udan Tashtari said...

वाह!!

वाणी गीत said...

मौन को समय पर मुखर भी होना है !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह जी वाह

हितेष said...

मौन की भी अपनी भाषा है , और शायद सबसे संवेदनशील है।
"जब मौन हो जाता है मुखर …" बेहतरीन !

ज्योति सिंह said...

bahut sundar .nav varsh ki dhero badhaiyaan

संजय भास्‍कर said...

वाह बहुत ही खूबसूरत |

Telkom University said...

कैसे मौन और मुखरता का संयोजन कवि के लिए एक सुधार का स्रोत बनता है, जैसा कि कविता में दिखाया गया है?
Greting Telkom University