Monday, February 18, 2013

तनहा

जब भी पाती हूँ
अपने को तनहा
जाने कैसे खबर
पा जाते है वो
मुरझाए  टूटे
 बिखरे  -बिखरे
जर्जर  से
घायल  ख्वाब


मेरे पास  खिचे
चले आते है
फ़ौरन बिना कोई
 दस्तख दिए
जैसे कि
 पनाह लेने
और  मै
 सब  भुला


 इनकी तीमारदारी में
 इनको सजाने
संवारने में
हो जाती हूँ
इतनी मशगूल कि
 समय के  गुजरने का
एहसास ही
कंहा हो पाता है










19 comments:

Anonymous said...

keep spirits up.

Anonymous said...

keep spirit up

Saras said...

इनके जैसा साथी नहीं....!

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियाँ सहलाने पहुँच जाती हैं..

दिगम्बर नासवा said...

ख्वाब आते रहें नित नए तो जीना आसान हो जाता है ... जीवन ऐसे बेटे तो कितना अच्छा ...

sourabh sharma said...

सचमुच ख्वाबों की वजह से ही हमारी दुनिया इतनी खूबसूरत हैं। भले ही वो कितने जर्जर ही क्यों न हो गए हों।

Apanatva said...

सतीश सक्सेना has left a new comment on your post "तनहा":

इंशा अब इन्हीं अज़नबियों में,
चैन से सारी उम्र कटे ....

मंगल कामनाएं आपके लिए !

mridula pradhan said...

samay bitane ka achcha tareeka hai......

Jyoti khare said...

सुंदर रचना
बधाई

आग्रह है मेरे ब्लॉग मैं भी सम्मलित हों
jyoti-khare.blogspot.in

avanti singh said...

बहुत ही उत्तम पोस्ट,बधाई....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना,
बहुत सुंदर

dipayan said...

दो साल के बाद फिर से ब्लाग जगत में आ रहा हूँ । बहुत खूब लिखा आपने । सुन्दर भाव ।

sm said...

बहुत सुंदर

Satish Saxena said...

आपके स्वास्थ्य के लिए मंगल कामनाएं..

ज्योति सिंह said...

bahut hi sundar

ज्योति सिंह said...

bahut hi sundar

ज्योति सिंह said...

bahut hi sundar

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

vandana gupta said...

सुन्दर अहसास