निंदा रस का अपना रूप ,रस ,गंध, स्वाद और उन्माद है .गूंगे के गुड सा है ,निर्गुनिया ब्रह्म सा भी .वैसे भी आदमी की फितरत है ,आत्म श्लाघा(शलाघा)में जीता है ,आत्म रति में भी मुग्धा भाव लिए । पता नहीं किस झोंक में कहा होगा संत ने - निंदक नियरे राखिये ,आगन कुटी छवाय , बिन साबुन पानी बिना ,निर्मल होतहै काय .
54 comments:
यही द्वन्द है।
Human psychology is so complex...but yes , we can always choose not to be hypocrites :)
सच में यही होता है :(
Apne maap dand,khud ke liye kuchh aur doosaron ke liye kuchh aur hote hain! Charag tale andhera!
सरिता दी!
अपने चहरे के किसी दाग नज़र आते हैं..
क्षुद्र मानसिकता इसे ही कहते हैं.....
जीवन के इन रंगों में समय बीतते पता ही नहीं चलता कि हम बच्चे से बड़े कब हो गए. समय आने पर विवेक भी आ जाता है.
आज तो एकदम सच बयान कर डाला. क्या बात है. बधाई.
दूसरो की कमियाँ
निकालने मे हम को
ना जाने इतना
आनंद क्यों आता है ?
पर जब दूसरे हमारे लिए
ये ही काम करे तो
हमारा खून तुरंत
खौल क्यों जाता है ?
इसी सोच को बदलने की जरुरत है
aisa hi hota hai... :)
सारी समस्या की जड़ यही है !
आभार !
satya hai ,yahi to na samjhi hai sarita ji ,sundar
सही कहा जी । हकीकत तो यही है ।
kitni galat baat hai......
truth is bitter
difficult to accept
beautiful poem
मैं भी पहले ऐसा ही कर देता था,
लेकिन अब ऐसा नहीं करता हूं,
बल्कि दूसरों की गलती से कुछ सीखता हूं,
Bhushan has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
जीवन के इन रंगों में समय बीतते पता ही नहीं चलता कि हम बच्चे से बड़े कब हो गए. समय आने पर विवेक भी आ जाता है.
रचना दीक्षित has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
आज तो एकदम सच बयान कर डाला. क्या बात है. बधाई.
Posted by रचना दीक्षित to Apanatva at May 12, 2011 7:47 AM
राकेश कौशिक has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
दूसरो की कमियाँ
निकालने मे हम को
ना जाने इतना
आनंद क्यों आता है ?
पर जब दूसरे हमारे लिए
ये ही काम करे तो
हमारा खून तुरंत
खौल क्यों जाता है ?
इसी सोच को बदलने की जरुरत है
Posted by राकेश कौशिक to Apanatva at May 12, 2011 10:13 AM
parul to me
show details May 12 (1 day ago)
parul has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
aisa hi hota hai... :)
Posted by parul to Apanatva at May 12, 2011 11:43 AM
ज्ञानचंद मर्मज्ञ has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
सारी समस्या की जड़ यही है !
आभार !
Posted by ज्ञानचंद मर्मज्ञ to Apanatva at May 12, 2011 5:36 PM
ज्योति सिंह has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
satya hai ,yahi to na samjhi hai sarita ji ,sundar
Posted by ज्योति सिंह to Apanatva at May 12, 2011 6:44 PM
डॉ टी एस दराल to me
show details May 12 (1 day ago)
डॉ टी एस दराल has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
सही कहा जी । हकीकत तो यही है ।
Posted by डॉ टी एस दराल to Apanatva at May 12, 2011 8:43 PM
Bhushan has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
जीवन के इन रंगों में समय बीतते पता ही नहीं चलता कि हम बच्चे से बड़े कब हो गए. समय आने पर विवेक भी आ जाता है.
Posted by Bhushan to Apanatva at May 12, 2011 7:40 AM
mridula pradhan has left a new comment on your post "सवाल ( 2 )":
kitni galat baat hai......
Posted by mridula pradhan to Apanatva at May 12, 2011 9:01 PM
maintenance kee vazah se comments disappear ho gaye the.jo save hue unhe maine cut paste karke laga diya hai.
kuch rah gaye ho to kshamaprarthee hoo.
ज़िन्दगी की तल्ख़ मगर सच्ची बात ..बहुत खूब
यही तो मानव की कमजोरी है।
अच्छा सवाल।
ऐसे दोहरे चरित्र वाले बहुतेरे मिलेंगे।
सार्थक प्रश्न करती प्रस्तुति।
सवाल सौ फ़ीसदी जायज है, जवाब हमें भी जानना है।
दूसरोंकी कमिया निकालने में हमें इसलिए आनंद आता है की,
हमारा अहंकार तृप्त होता है !
वही काम कोई दूसरा हमारे प्रति करता है हमारा अहंकार
दुखी होता है !
निंदा रस का अपना रूप ,रस ,गंध, स्वाद और उन्माद है .गूंगे के गुड सा है ,निर्गुनिया ब्रह्म सा भी .वैसे भी आदमी की फितरत है ,आत्म श्लाघा(शलाघा)में जीता है ,आत्म रति में भी मुग्धा भाव लिए ।
पता नहीं किस झोंक में कहा होगा संत ने -
निंदक नियरे राखिये ,आगन कुटी छवाय ,
बिन साबुन पानी बिना ,निर्मल होतहै काय .
सच्चाई को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने !शानदार रचना!
khoon kyon ubal marta hai...??
sach me di...bilkul sach
अब दूसरों की विवशता में आनंद पाने का आशिर्वाद हमनें पा लिया है। क्योंकि हम अहं को इष्ट बना पूजते साधते रहे।
बिल्कुल सच कहा है ... ।
क्या बात है...एकदम सही...
sachchai bayan karti hui bhaut hi sunder prastuti.....
ये दोहरा चरित्र ही तो ख़तरनाक है ...
khud kee kamiya jo darati hai hamen , to kaise na nikalen kamiya kisi kee. sunder kavita .
यह तो सोंचना ही नहीं है...हम दुनिया भर से अच्छे हैं...:-)
शुभकामनायें आपको !
It is a human weakness.
सच बयान करती हुई सुन्दर रचना ..
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
छोटे शब्द गंभीर अर्थ.. बहुत सुंदर
सच्ची बात सार्थक प्रश्न करती प्रस्तुति।
सच कहा है आपने
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सुन्दर प्रश्न कविता. धन्यवाद.
सदियों से यह अनुत्तरित प्रश्न है ।
aapki nichli post par tippni kee koshish kee , post nahi kar paaee ..aapka likha hua khoob pasand aaya ...dost ka gam jhalak raha hai ..
Yahi to parashn hai ! Behtareen rachna!
सुन्दर अभिव्यक्ति
यही तो कमाल है
बडा सही सवाल है।
Bahut hi sahajata ke saath aapne bahut badi baat kahi.. aabhar..
anilavtaar.blogspit.com
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