एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
ठोकर लगी , तनक लडखडाए
तो क्या ? तुरंत संतुलन बनाते
कदम आगे बढाए ,भय भगाए
होगा उस समय ये ही सही ।
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
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16 comments:
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
.........
bilkul uchit nahin......bahut badhiyaa
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
बहुत सही कहा आपने। हर मौसम की अपनी पहचान है।
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाई नये साल की मुबारकवाद्
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
सच कहा .... फूल चाहिएं तो काँटों से क्या डरना ......... प्राकृति को लाजवाब लिखा है .......
प्रकृति के माध्यम से जीवन में आगे पढ़ने को प्रेरित करती खूबसूरत रचना...
नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
एकदम सटीक लिखा है आपने
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
bahut sundar baat kahi aapne ,nav varsh aanewaala mangalmay ho.
very nice lesson through a beautiful poetry...you always write from the heart..
i am following your advice for being a bit regular on homealone...thanks for motivating me...it will be a lot happier place now..
मैं आपके ब्लाग पर आया तो फिर पिछली कविता में खो कर रह गया।
इस पोस्ट के भाव भी बहुत उम्दा हैं।
नववर्ष मंगलमय हो।
Yehi to behtar jeevan darshan hai........
bahut sundar .har cheej apne maousam ke anuroop hi achhi lagti hai .
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
एक बहुत सुंदर प्रस्तुति और नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कामना के साथ
सादर रचना दिक्षित
अच्छा संदेश देती कविता।
प्रकृति के भी कुछ नियम है..
यक़ीनन बेहतरीन रचना सारगर्भित भाव दाद क़ुबूल करें आपको पहली बार पढ़ा ..निराश नहीं हुआ
very well expressed !
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए..was excellent.
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