जब भी पाती हूँ
अपने को तनहा
जाने कैसे खबर
पा जाते है वो
मुरझाए टूटे
बिखरे -बिखरे
जर्जर से
घायल ख्वाब
मेरे पास खिचे
चले आते है
फ़ौरन बिना कोई
दस्तख दिए
जैसे कि
पनाह लेने
और मै
सब भुला
इनकी तीमारदारी में
इनको सजाने
संवारने में
हो जाती हूँ
इतनी मशगूल कि
समय के गुजरने का
एहसास ही
कंहा हो पाता है
अपने को तनहा
जाने कैसे खबर
पा जाते है वो
मुरझाए टूटे
बिखरे -बिखरे
जर्जर से
घायल ख्वाब
मेरे पास खिचे
चले आते है
फ़ौरन बिना कोई
दस्तख दिए
जैसे कि
पनाह लेने
और मै
सब भुला
इनकी तीमारदारी में
इनको सजाने
संवारने में
हो जाती हूँ
इतनी मशगूल कि
समय के गुजरने का
एहसास ही
कंहा हो पाता है