म्हारी जनम जाटनी घर आई (जाट )
देख रे बलम म्हारी चतुराई ( जाटनी )
जाट ....
आ तो दौड़ी दौड़ी अजी दौड़ी दौड़ी
कन्दोइया क हाली है जी
कन्दोइया क हाली ।
आप र तो लाडू बलम र सेंवा
छोकरा न जलेबी दिलाय लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई .............
जाटनी ..........
देख रे बलम म्हारी चतुराई ................
जाट .......
आ तो दौड़ी दौड़ी , अजी दौड़ी दौड़ी
कुम्हारा क हाली है जी कुम्हारा क हाली
आप र तो मटकों बलम र चाडो
अर छोकरा न घुड्ल्यो दिला लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई ..............
जाटनी ......
देख रे बलम म्हारी चतुराई .............
जाट .........
आ तो दौड़ी दौड़ी , अजी दौड़ी दौड़ी
कचहरी म चाली है जी कचहरी चाली
आप र तो माफ़ी बलम र फ़ासी
छोकरा को खोपड़ो फुडाय लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई ..............
जाटनी .......
देख रे बलम म्हारी चतुराई .............
इस गीत से नागौर मेरे जन्मस्थल की बहुत सी यादे जुडी है । मै आठ साल की रही होंगी जब जाट का किरदार रंगमंच पर निभाया होगा........याद आ रहा है नृत्य-नाटिका के बीच मे मेरी मूंछो पर ताव देते समय उनका हाथ मे आजाना और सब कुछ भूल पहिले उन्हें ठीक से चिपकाना...........बचपन के दिन भी क्या दिन थे............आज पचपन साल बाद भी कल की सी बात लग रही है.........
ये पोस्ट सतिशजी को dedicate कर रही हूँ ............
उनकी आज की पोस्ट से ही प्रेरणा पा ये दिन लौटा है......सारे शव्द उमड़ कर चले आए अतीत के साये से वर्तमान को धनी बनाने ।
इस लोक गीत से एक बात और स्पष्ट होती है कि ये भ्रम ही है कि नारी अबला है दबा दबा सा व्यक्तित्व ही उसका जीवन है।
यंहा जाट पति शिकायत तो कर रहा है पर बड़े ही नाज़ से ..........अपनी पत्नी पर गर्वित होते हुए ............और उसे छेड भी रहा है। बच्चे को उससे ज्यादा तवज्जु देने पर ।
कंदोई ... हलवाई
कुम्हार ... पोटर
कचहरी .... कोर्ट
खोपड़ो ....सिर
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39 comments:
बहुत अपनापन लगा इसे पढकर, यहां आकर!
सरिता आंटी,
नमस्ते
लोक-रस, लोक-साहित्य, लोक-गीत हमेशा से मेरा पसंदीदा विषय रहा है. बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर. कुछेक शब्द के मौलिक अर्थ नहीं आने पर भी भाव की समग्रता में गीत ने बहुत आनंद दिया. अंतिम बांध तो बहुत ही चुटीला जान पड़ा. हमारे मिथिलांचल में भी "जाट-जट्टिन" के मनभावन नृत्य-नाटिका की श्रृंखला भी बहुत लोकप्रिय है. इसीलिये मुझे प्रस्तुत गीत के भाव समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई. बहुत अछि प्रस्तुति. धन्यवाद !
Hi..
Sach puchhiye to aaj pahli baar koi Rajasthani geet padh raha hun..aur..Rajasthani na aane ke bavajood geet ke bolon se uski madhurta alag hi nazar aayi hai.. Yun bhi pati patni ke beech ke pyaar, manuhar aur gulgulon ki maar ko pratibambit karte adhiktar lokgeet hamesha se hi saras lagte hain..
Aapka dhanyawad ki aapne apne bachpan ke kisse se humare hothon par bhi ek muskaan laa di..
Deepak..
Mai kahne aayi thee ki,aap tippanee bhee badehee apnepanse deteen hain!
Yahan dekha to aapki rachana dikhi! Isme bhee kitna apnapan hai...khush haalkee ek jhalak!
Lekin pichhalee do baar se mujhe aapke lekhan ki ittela na jane kyon mil nahi rahee?Jab ki,mai aapki anusaran karta hun!
Sarita jee, bahut badhiya......:)
lekin rajasthani dekh kar mujhe sirf ek baat yaad aatee hai.........."padharo mhare desh"........:)
वाह जी वाह । मज़ा आ गया ।
हमें भी एक याद आ गया , बचपन में सुना था ।
सासु बिको चाहे ससुरा बिको
चाहे बिक ज्यो हरो रुमाल
बैठूंगी मोटरकार में ।
chokha hai :)
बहुत अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट कुछ नया जानने मिला
राजस्थान की याद आ गयी पढ़कर, बहुत सुन्दर !
सरिता दीदी (चलिए मै’म की दीवार तोड़ दी आज)...
कोई भी प्रदेश लोक गीत के मामले में निर्धन नहीं है... यही हमारी परम्परा है और दौलत भी... इन गीतों के बारे में “अच्छा” कहना भी इनकी शान में गुस्ताख़ी होगी… कहाँ लंदन और कहाँ नागौर..दीदी आज तो जाट और जट्टिन के सारे मान मनुहार सामने आ गए... और वो आप्की मूँछों का किस्सा… हँसी आ गई बरबस!!
चलिए, लेखन सफल हो गया अगर मैंने आपका बचपन याद दिला दिया, अमेरिका में बैठ कर लोकगीतों पर आपकी लेखनी उठने से, इन लोकगीतों में जान आ जाती है ! खेद है कि इन्हें अब शायद ही कोई याद करता है !
शुभकामनायें
बड़ा अच्छा लगा पढ़कर।
लोक गीत लगभग समझ आ गया लेकिन इसका वास्तविक आनंद वही उठा सकता है जो इसे आत्मसात करने की क्षमता रखता हो.नाटक का आपका संस्मरण रोचक रहा.
आज तो गज़ब का रंग चढा हुआ है ... :):) और आपकी मूंछे हाथ में आना .. हा हा हा ...मज़ा आ गया यह भी जान कर ....
लोकगीत का अपना आनंद है ...बहुत सरस लोकगीत रहा ...
हमरे बिहार में नट अऊर नट्टिन का इस तरहा का केतना लोक गीत मिलता है जिसमें नट्टिन सिकायत करती है कि ऊ जो भी चीज मँगवाई थी अपना नट से ऊ नहीं लाकर दिया. नट उसको मनाते हुए अपना मजबूरी बताता है...
आज आपका अलग रूप देखने को मिला है.. सचमुच माटी का खुसबू है आपके हर पोस्ट में... सरिता दीदी आपको प्रणाम!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बड़ी प्यारी शिकायत ...
I always admire ur works n this one is absolutely wonderful !!
- Smita
littlefoodjunction.blogspot.com/
मैंने पहली बार कोई राजस्थानी लोक गीत पढ़ा है दिल्ली में पली बड़ी हूँ इसलिए ये सब तो नहीं देखा लेकिन अपने घर के बड़ो से ऐसे कई किस्से सुने है आप का भी किस्सा पढ़ कर अच्छा लगा !
और हाँ, आपकी मुछो वाली बात अच्छी लगी !
मै तो राजस्थान मे नौ वर्ष गुजारी हूं इस कारण मेरी यादे भी अतीत की जाग उठी आपके इस पोस्ट से ,लोक गीत मे अपनेपन का अह्सास होता है ,मिट्टी की खुशबू होती है ,बहुत बढिया लगा आज आकर .सुन्दर अति सुन्दर .
लोकसंस्कृति की महक यहां ब्लाग पर आ रही है,यह देखकर अच्छा लगा।
sachmuch bachpan ke baare me jab bhi koi kavita ya lekh nikalti hai,apni bhi bachpan ki yaaden taza ho uthati hai. shayad sbhke saath aisa hi haota ho bahu hi achhi lagin aapki muchhon ka chip kana hansi bhi aai.bahut sundar.
poonam
बहुत अच्छी रचना
bahut khubsurat...behad meethi, 3 baar mauka laga par aaj tak naagaur jaa nahi paya, yahan laga main pahunch gaya jaise.
pranam
Aapke comments itne apnepan se labrez hote hain,ki,mujhe bhi aap se milne ka bahut man hai.Jab kabhi Maharashtr aanaa ho to mere ghar zaroor aayen! Ya yun kahun,ki,Maharashtr ghoomne kaa khaas programme banayen! Badi khushi hogi!
Ji Pune me hun.Mera e-mail Id:
kshamasadhana8@gmail.com
Jaanti hun aap apni bitiyake paas hain aur ek nanhee kalee ka intezaar hai!
very very good.....
and the message it carries is great...
हाहाहहहाहा.मजा आ गया। वैसे भी पत्नी पर गर्व नहीं करेगा तो किस पर करेगा। गर्व पत्नी पर भी करना चाहिए.......
लोकरंजक, मर्मस्पर्शी रचना....सुखद अनुभूति हुई इस ब्लाग पर आ कर....। माटी से जुड़ी रचना परोसने हेतु धन्यवाद।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bahut hi badiya....
mere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...
http://asilentsilence.blogspot.com/
Saritaji,aapko laga ki "Bikhare Sitare" kee kadee pahle padhi hui hai,to aapko bilkul sahi laga! Ye Maalika mai punahprakashit kar rahi hun!
क्या बात है जी ?आज कल लोक गीत की बहार छाई हुई है पिपली लाइव का गीत महंगाई डायन खात है मशहूर हो रहा है और ब्लाग जगत में सतीश्जी और आपके द्वारा लिखे लोक गीत \आनन्द आ गया \लोक गीत तो मेरे मन में बसते है \
कभी आकाशवाणी पर मैंने भी गए है लोक गीत |आपके गीत के साथ अक राजस्थानी गीत की दो लाइने और
इंजन की सिटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे ड्राइवर गाड़ी होले होले
इंजन की सिटी में ......
sach aap benglor me hoti to ham kal hariyali teej mana lete ?
प्रशंसनीय ।
Good post and this enter helped me alot in my college assignement. Gratefulness you seeking your information.
राजस्थान से लौटने के बाद इस पोस्ट को पढ़ना सुखद रहा !
लोक रंग में रंगी सुंदर रचना ... बचपन की यादें मधुर होती हैं ....
MAST MAJA Aa gaya
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