Sunday, March 27, 2011

सवाल ( १ )

अभावों का बस

जंहा देखो वंहा

होता ही रहता

है क्यों जिक्र ?

इसमें नाहक समय

बर्बाद हो रहा

इसकी क्यों नही होती

किसी को तनिक फ़िक्र ?

36 comments:

Bharat Bhushan said...

बहुत बढ़िया बात उठाई है आपने. प्रकृति में डिमांड एंड सप्लाई का नियम है. जहाँ अभाव होगा उसे भरने के लिए प्रकृति कुछ तो करेगी ही. मेरे एक मित्र शिकायत किया करते थे कि व्यस्तता के कारण उनके पास टाइम नहीं होता था. उनकी पीठ दर्द निकल आई. तीन महीने आराम किया :))

प्रवीण पाण्डेय said...

व्यर्थ न करेंगे तो अभाव भी न होगा।

Apanatva said...

ha jee .... Praveenjee

fir to

" na rahega bans aur na bajegee bansuree "

सुज्ञ said...

रोते है बस अभावो का रोना,
और निभाव नहीं करते।
उनके दिलों मे बस,
सद्भावों का अभाव होता है।

डॉ टी एस दराल said...

सही है , अभाव को क्यों भाव दिया जाए ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आदत हो गयी है अभावों का ज़िक्र करने की ..आखिर वक्त भी तो काटना है न :)

Satish Saxena said...

सही बात ....शुभकामनायें आपको !

sangeeta said...

Nice to see you after so long...this habit is actually indulging in self pity...

निवेदिता श्रीवास्तव said...

इस उम्मीद में समय बर्बाद करते हैं कि शायद कोई समाधान निकल आये ....

संतोष त्रिवेदी said...

vaise fikra karke vah aur samay barbaad karega,vah uske liye vyarth nahin hota !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था कि अभाव चीखते हैं.. इसलिए उनके विषय में अधिक शोर शराबा होता है!!

महेन्‍द्र वर्मा said...

हमेशा अभावों का रोना नहीं रोना चाहिए। जो कुछ पास में है, वही बहुत है।
अच्छी क्षणिका है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बिल्कुल सच कहा आपने ..... अभाव का ज़िक्र ज़्यादा ही होता है....

रचना दीक्षित said...

अरे भई जो अपना है वो तो हो गया अपना जो नहीं है उसके लिए हल्ला काटो यही आदत हो गयी है हम सुधरने वालों में भी तो नहीं है

मुकेश कुमार सिन्हा said...

abhav to jindagi hai..:)

करण समस्तीपुरी said...

लाख टके का सवाल... अभाव का जिक्र करने वालों के पास समय का शायद कोई अभाव नहीं है. गागर में सागर भरने के लिए, धन्यवाद !

पूनम श्रीवास्तव said...

sarita di
sabse pahle to aapko apne blog par bahut dino baad kar badi hi khushi ho rahi hai.
ab aapka swasthy kaisa hai ,puri tarah swasth to hain .
pata nahi aapse kaisa judav sa hai jo blog par aapki anupasthiti se man ko bechain sa karta hai.
di,idhar main bhi gat december se bahut hi aswasth chal rahi thi .abhi bhi purntaya theek nahi hun.isliye net par bhi bahut hi aniymit hi rahi.
ab thoda -thoda net par haath chala rahi hun .
is samay mere pet me do.ne sujan tatha aanto me sikudan batai hai thoyriod bhi kafi badha hai atah haath chalane me ungliya kapti hai .isi se sabko jawab bhi vilamb se de paati hun .pata nahi kyun shayad pahli bar aapse hi apni bimaari ka jikra kiya hai.atah agar aapko niymit tippni na de paaun to mujhe ummid hi nahi pura viswas hai ki aap mujhe dil se xhma karengi.
aapka sawal waqaibilkul sahi hai.insaan aage ke baare me hi sochta hai .aaj jo uske paas hai vahi bahut yah kabhi maankar kyon nahi chalta.
bahut hi vichrniy prastuti.
badhai di
sadar pranaam
poonam

ज्योति सिंह said...

ye to sach hai ,kuchh karna jaroori hai .

विशाल said...

अभावो का रोना न हो,पर होना तो है.
deficit budgeting है यह.भूषन जी से सहमत.
अच्छा सवाल किया है .
सलाम .

Dinesh pareek said...

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/
http://dineshsgccpl.blogspot.com/

सदा said...

रोते है बस अभावो का रोना,
और निभाव नहीं करते।
उनके दिलों मे बस,
सद्भावों का अभाव होता है

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

amrendra "amar" said...

bikul sahi kaha hai aapne ........
saarthak rachna

ZEAL said...

hmm...minute observation .

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बातें ज्यादा काम कम, मानव सहज स्वभाव !
संकल्पों के सामने ,रहता कहाँ अभाव !

विचारोत्तेजक पोस्ट के साधुवाद !

Akhilesh said...

ज़ख्मो को जंग में गिनने वाले जंग जीता करते नहीं|
काम की लगन वाले अभावो से विचलित होते नहीं|
जिन्हें आलस्य का रोग है वे अभावो को दोष देते है|
राहों से जो खुद ही कांटे हटा दो
तो राहों पर कांटे होंगे ही नहीं|

sm said...

well said
this is what our politicians also want.

Apanatva said...

Akhilesh I totally agree with your comment.

Udan Tashtari said...

बहुत सटीक और पैनी दृष्टि..वाह!

mridula pradhan said...

choti si lekin bahot umda likhi hain....

कविता रावत said...

yahi to rona hai... jo paas hai uski chinta nahi jo nahi uska rona..
bahut badiya prastuti

Kunwar Kusumesh said...

badhiya aur sateek lekhan.

Patali-The-Village said...

बहुत सटीक|
नवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सोच बड़ी चीज़ है

हरकीरत ' हीर' said...

@ जहाँ अभाव होगा उसे भरने के लिए प्रकृति कुछ तो करेगी ही. मेरे एक मित्र शिकायत किया करते थे कि व्यस्तता के कारण उनके पास टाइम नहीं होता था. उनकी पीठ दर्द निकल आई. तीन महीने आराम किया :))

):):

निवेदिता श्रीवास्तव said...

पहली बार ही आपको पढा ,प्रभावी लगा ।कभी-कभी अच्छे लिन्क्स की जानकारी न होने से वो बिना पढे ही रह जाते हैं ।
आपने मुद्दा सही उठाया है ,परन्तु कभी-कभी हल भी ऐसे ही निकल आता है ।
सादर !

Roshi said...

hamari adat hai kuch na kuch kehne ki..............
sunder,sarthak bhav