Friday, November 19, 2010

विजयी

ऐसा नहीं कि
हमने दुःख कभी
भी नही झेले
मुसीबत जब
भी आन पड़ी
हमने भी तो
बहुत पापड़
जीवन मे है बेले ।
नहीं आया तो
बस हां
अपने दुखो की
नुमाईश करना
बिलकुल नही आया ।
दुःख दूसरो कों बता
हमारे अपनों का
मन
भारी करने से
कम
कैसे होता है ?
ये आज तक मुझे
समझ नहीं आया ।
सच तो ये है कि
विपदा की घड़ी
बहुत कुछ हमे
सिखा जाती है
अपने परायो मे
फर्क बता जाती है ।
आत्मबल ही
हमे निराशा से
उबारता है
विषम परिस्थिती
से जूझना भी
ये ही तो सदैव
हमे सिखाता है ।
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।

25 comments:

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen !!!

Parul kanani said...

bilkul yahi saar hai jeevan-yudh ka!

Majaal said...

एकमात्र नुख्स यह की कविताई को भी हम नुमाइश ही मानते है, बाकी हम आपसे अक्षरतः सहमत है ...
पर लिखते रहिये तो हम कहेंगे ही .. ;)

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Didi, aap dil se likhte ho!! hai na!!

अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।

bahut khub!!

sangeeta said...

It was sad to know about your friend . The kavita relates to that i can understand....i have a friend who is a cancer survivor too and she is so full of life that i need to learn a few things from her. But yes it takes a lot to be strong and keep smiling through it all....

Take care and try to be happy....

Bharat Bhushan said...

कविता वही होती है जो पीड़ा पर मरहम लगाए और अबल को सबल बनाए. आपकी कविता दोनों कार्य करती है. सुंदर रचना.

रचना दीक्षित said...

बहुत गहरा सन्देश देती एक प्यारी सी कविता

मनोज कुमार said...

प्रेरक रचना। आभार।

दिगम्बर नासवा said...

BAHUT HI PRERAK .. SACH KAHA .. DUKHON KO BHOOL KAR OOPAR UTHNA HI JEEVAN HAI ...

रश्मि प्रभा... said...

sahi kaha......zindagi sab sikha jati hai

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

अनित जी,

कलम का सिपाही पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया...पर ऐसे क्षमा मांग कर मामला रफा-दफा ही होता है...दिलों से ख़त्म नहीं होता.....

आपकी रचना बहुत सुन्दर है और वास्तविक भी...सच है अनुभव में पक कर ही इंसान वास्तव में इंसान बन पता है....शुभकामनाये|

Kunwar Kusumesh said...

"दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है"
वाह,उक्त पंक्तियों में दुखों से लड़ने का मंत्र छुपा है

प्रवीण पाण्डेय said...

तप कर ही सोना निखरता है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सरिता दी! आपकी कविताओं की औसत लम्बाई से ज़्यादा लम्बी कविता.. अनुभव की लम्बाई बताता है. रीडर्स डाइजेस्ट में पढा था कि अपने दुःखों की नुमाइश मत करो, इनके लिए कोई बाज़ार नहीं होता और न ख़रीदार!
रहीम ने भी कहा है किः
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय,
सुन इठलैहें लोग सब, बाँट न लैहें कोय.
और विजयी मनुष्य का प्रगति मार्ग जो आपने दिखलाया, वो आपका अनुभव है जो हम जैसे अनुज के लिए मशाल है, ज्योति पुंज!

mridula pradhan said...

ekdam sahi aur behah sunder kavita.

kshama said...

दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।
Jeevan kaa saransh bata diya aapne! Wah!

शरद कोकास said...

अच्छा विश्लेषण है ।

ZEAL said...

दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ..

Very inspiring lines .

.

Urmi said...

बहुत सुन्दर, प्रेरक और लाजवाब रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती !

sangeeta said...

How are you Sarita Ji...
Please keep writing such lovely poems as these are so motivating and uplifting ...both for the reader and for you .. you understand what i mean!!
Take care.

मंजुला said...

Very inspiring lines .

regards
manjula

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

कविता में जीवन के अनुभव की गंध समाहित है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

शरद कोकास said...

दुर्दम्य आशावाद है ।

Anonymous said...

माँ की पुण्यतिथि पर माँ के दुआरा दीया गया आशीर्वाद है कविता