Saturday, October 9, 2010

खोट

जब इंसान

का मन

हो अशांत

चारो ओर

भी तब वो

अशांति ही

फैलाता है

कोई कहे एक

बदले मे चार

वो सुना कर

ही चैन

अथाह पाता है

इस समय वो

दूसरो की

झूठी तारीफ

सुनकर भी

पूरा जल भुन

सा जाता है

मजेदार बात

ये है कि

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ।

25 comments:

Bharat Bhushan said...

खूब कहा है.

'खोट अपने में
तो एक भी
पाता नहीं
दूसरों में हजार
खोज लाता है'

वाह.

Satish Saxena said...

इस रचना को पढ़ कर लगा कि आपने आम घरों की हकीकत बयान कर दी ! मगर मुझे विश्वास है कि हम इसे समझने की कोशिश नहीं करेंगे :-)

कडुवासच said...

... बहुत सुन्दर ... प्रसंशनीय रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सही दिशा दिखा रही है यह रचना ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

'खोट अपने में
तो एक भी
पाता नहीं
दूसरों में हजार
खोज लाता है' बहुत सुन्दर......

मनोज कुमार said...

कविता तल्ख़ वास्तविकता – (खोट -- झूठ, मक्कारी, जातीय दंभ) को सहज ढ़ंग से बेपर्द करती हुई प्रतिरोध के रूप में सामने आती है और पाठक में साहस की सृष्टि करती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

फ़ुरसत में …बूट पॉलिश!, करते देखिए, “मनोज” पर, मनोज कुमार को!

प्रवीण पाण्डेय said...

मन तो मन है, क्या कहें उसकी।

sangeeta said...

How true it is.... life becomes hell if you have even one person like this around you. We need to keep an open mind to see reason.

शोभना चौरे said...

बुरा जो देखन मै चला
बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा अपना
मुझसे बुरा न कोय ....
सालो पहले कबीरजी कह कर गये है पर कहाँ ?
सुन्दर भाव |

ज्योति सिंह said...

ye to satya hai ,insaan apne ko bekasoor hi paata hai ,jaante huye bhi apni galti sweekar nahi karta .sundar sada ki tarah .

सम्वेदना के स्वर said...

हर व्यक्ति आज एक एक दर्पण लिए घूम रहा है ताकि हर किसी को दिखाता फिरे कि तुमहारे चेहरे में कितने दाग़ है... कभी ख़ुद की शक्ल देखने की फ़ुर्सत नहीं उसे.. अनुकरणीय!!

Majaal said...

मनुष्य प्रकृति ही कुछ ऐसी है,
जो दुखी होता है भीतर से,
वो ही औरों को सताता है ...

लिखते रहिये ...

पूनम श्रीवास्तव said...

मजेदार बात

ये है कि

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ---------------------------सच ही लिखा है आपने --व्यक्ति अपने अन्दर नहीं झांकता वह बस दूसरों में अवगुण खोजता है--यही आज के ज्यादातर मनुष्यों का चरित्र है। नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनायें। पूनम

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

मनोज भारती said...

मजेदार बात
ये है कि
खोट अपने मे
तो एक भी
पाता नहीं
दूसरो मे हजार
खोज लाता है ।

सही कहा आपने !

दिगम्बर नासवा said...

ये तो होता ही है ... अपने आप को बहुत कम लोग ग़लत कहते हैं .... बहुत सही लिखा है .....

शरद कोकास said...

अच्छा विचार है ।

रचना दीक्षित said...

वाह!!!सही कहा आपने

Priyanka Soni said...

बहुत सटीक बात !

hem pandey said...

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ।

- इंसान की यही फितरत उसे अशांत करती है |

Parul kanani said...

simply nice!

अरुणेश मिश्र said...

सार्थक एवं प्रेरणाप्रद ।

हास्यफुहार said...

अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
हज़ामत पर टिप्पणी के लिए आभार!

सुधीर राघव said...

बहुत खूब। आपने कबीर की याद दिलादी- जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोये

ZEAL said...

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ...

----

How true !

.