Saturday, April 24, 2010

बचाव

जली कटी
बाते सुनना
हर एक के बस
की बात नहीं
वैसे कबीर दास जी
" निंदक नियरे राखिये "
कह गए है
पर इसका
अनुसरण करना
इतना आसान
भी नहीं ।
छींटा कशी गर
बन गया है
आपके अपनों
का स्वभाव ।
चुप्पी और
मुस्कराहट का
कवच पहिन कर
करिये बस आप
अपना बचाव ।
ज्ञानी लोगो
को चाहिए कि
करे निंदा के
पथ का त्याग ।
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।

22 comments:

कविता रावत said...

Kabirdas ji ne kayee varsh purv yah baat kahi lekin aaj nindakon ki koi kami nahi hai shayad us samay nindak ki sankhya kam rahi hogi......
Lekin aapne vartmaan pradrashya ko dekhte kue bilkul sahi kaha hai ki ज्ञानी लोगो को चाहिए कि करे निंदा के
पथ का त्याग ।
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।
... sahi marg dikhlane waalon ki aaj bhaari kami hai... lekin samajhdaar apni raah khud hi taalash lete hai....
Bahut shubhkaamnayne

मनोज कुमार said...

बुराई करने के अवसर तो दिन में सौ बार आते हैं, पर भलाई का अवसर वर्ष में एक बार आता है।

अगर आपको देखना ही है तो हर एक की विशेषताएं देखिए।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बचाव का नायब तरीका बता दिया है...एक चुप सौ को हराता है....शिक्षाप्रद रचना....बधाई

sangeeta said...

निंदा शब्द शायद पीठ पीछे बुराई के लिए कहा जाता है , positive criticism के लिए क्या शब्द है जानना चाहती हू !
मैं खुश हूगी अगर मुझे कोई मेरी गलतियाँ positively बताएगा पर पीठ पीछे निंदा बहुत बुरी है , सुनने वाले के लिए भी और कहने वाले के लिए भी !

Satish Saxena said...

छींटाकशी मुझे कभी वर्दाश्त नहीं होती है, काश मुझे इस क्षण मुस्कराना आ जाये !

nilesh mathur said...

अति सुन्दर !

रश्मि प्रभा... said...

निंदक को नजदीक रखना और हर वक़्त निंदा का सामना करना...आसान नहीं

सम्वेदना के स्वर said...

निंदक और आलोचक.. आलोचना और चुगली का भेद जो समझ गया वह आपकी कविता का मर्म भी अवश्य समझेग…अच्छी सीख..

रचना दीक्षित said...

बहुत अच्छी कही पर वो क्या करें जिन्हें निंदा रस से मीठा कुछ नहीं लगता

sm said...

nice poem
for health this is very imp.
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।

सम्वेदना के स्वर said...

बरसों पहले सरिका में पढी एक लघु कथा याद आ गई... एक आदमी बीमार होता जा रहा था, दवा नाकाम हो चुकी थी... किसी ने चुपके से घरवालों को एक नुस्ख़ा सुझाया.. और उनकी सेहत वापस लौट आई... नुस्ख़ा आज भी कई लोग इस्तेमाल कर रहे हैं... सुबह दो चम्मच दूसरों की निंदा और शाम को उनकी ख़ुद की तारीफ के चार चम्मच...

दिगम्बर नासवा said...

VAAH AAONE TO BAHUT BADI SEEKH DI HAI AAJ ... NINDAK TO AAS HONA CHAAHIYE PAR NINDA SE DOOR RAHNA CHAAHIYE ...

अरुणेश मिश्र said...

किसी की निन्दा करोगे तो जिन्दा कैसे रह पाओगे ? कबीर सब नही होते ।

Urmi said...

बहुत ही सुन्दरता से अच्छी शिक्षा देते हुए आपने उम्दा रचना प्रस्तुत किया है! बधाई!

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया रचना ...आभार.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

काश आज इसे वो भी समझते जो इस देश के बुर्जुआ बने बैठे हैं.......
सुन्दर रचना....

kshama said...

Aapke khayalat me behad paripakvta hai!Swanubhav se upje moti hain yah!

पूनम श्रीवास्तव said...

ekdam saty baat kahi hai aapne vaise ye bhi baat sahi hai ki aaj sahi rah dikhane wale jaldi kahan miltehai ,aapki galatiyan ginane wale jyada milenge.isi baat par kabeerdas ji ne yah bhi kaha tha ki,
dosh paraya dekh kar chale hasat hasant,
aapno yaad na aavai jaako aadi na ant.
poonam

Akanksha Yadav said...

ज्ञानी लोगो
को चाहिए कि
करे निंदा के
पथ का त्याग ।
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।
...Bahut sundar likha.....sarhak sandesh !!

Parul kanani said...

aisa ho jaye to baat hi kya!

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !

amita said...

Sarita ji,

you have conveyed very good message in this post.
now a days we rarely get people
who are true guide.
thanks for sharing such a wonderful
thought process.