Friday, January 15, 2010

अतीत से ( १ )

लगभग पचपन साल
पहले की है ये बात
कड़ाके की सर्दी
की थी वो रात ।
हम बच्चे आग
रहे थे ताप
सुनी हमने तब
पगों की चाप ।
हम सभी मचा
रहे थे धमाल
मुहं से भाप निकलने का
देख रहे थे हो
हतप्रभ , कमाल ।
एक छोटी लडकी
मेरी ही हम उम्र
धर्मशाला के हमारे
कमरे के द्वार पर आई ।
कुछ ठिठकी
कुछ सकपकाई ।
मैंने उसे अंदर बुलाया ।
दोस्ती का हाथ
था
बेझिझक
उसकी और बढाया ।
वो थी वंहा के
चौकीदार की बेटी ।
आग तापने
सिमटी , सकुचाई
उकडू
हो आग के कूंडे
के पास आ बैठी ।
हमने देखा लालटेन की
रोशनी मे उसका मुखड़ा ।
हाथ मे उसके था
बाजरे की सूखी
मोटी रोटी का
एक छोटा टुकड़ा ।
वो उसे खा नहीं रही थी
बस चूसे ही जा रही थी ।
मै भी टकटकी लगाए
उसे देखे जा रही थी ।
वो ऐसा क्यों कर रही ?
पूछने पर उसने
हमें था बताया ।
माँ है बीमार
तेज़ है बुखार ।
आज चूल्हा नहीं जला
बस , बासी रोटी से ही
है काम आज चला ।
माँ ने कहा है
आज इतना ही बस -
और नहीं मिलेगा ।
फिर सयानेपन से
उसने था समझाया ।
खाने से टुकड़ा
ज्यादा नहीं चलेगा ।
धीरे - धीरे चूसने से
सूखा टुकड़ा
जल्दी नहीं गलेगा
और खूब देर
तक चलेगा ।


कुछ बाते हमारे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती है .......
और ये रचना इस बात का ज्वलंत उदाहरण है .......................

19 comments:

हास्यफुहार said...

बहुत भावभीनी रचना.

मनोज कुमार said...

ह्र्दय स्पर्शी रचना.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मर्मस्पर्शी रचना.....आपने उस छोटी लड़की बह्वों को बहुत खूबसूरती से लिखा है...

मनोज भारती said...

अपनत्व भाव से लिखी मार्मिक रचना ।

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाकई, कुछ बाते हमारे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती है जिन्हें हम चाह कर भी नहीं भुला पते.
यादें अजीब होतीं हैं . कुछ इतनी मीठी कि जीवन उन्ही के सहारे चलता है, कुछ इतनी कड़वी कि याद कर आखें नम हो जाती हैं और कुछ ऐसी कि जिससे हमें एहसास होता कि इस दुनियाँ में कितने गम हैं.

आपकी इस रचना के संवेदनशील पहलू ने हृदय को छू लिया.

हमसे अपने संस्मरण बांटने के लिए धन्यवाद.

दिगम्बर नासवा said...

सच है ... पेट की जलन क्या कुछ नही करवाती .......... बहुत ही भावुक रचना है .........

हरकीरत ' हीर' said...

क्या ये सच्ची घटना है .....????

sm said...

excellent want to continue

AAj bhi mere Bharat ki yahi tasbir hai
kab aisa bhi din aayega iss bharat main ki har koi khayega taji roti

Anonymous said...

Very heart rendering mom..no child should have to go hungry..no parent should have to see their child go hungry or cold or any such basic need...not such a lofty goal if we want to achieve it..

alka mishra said...

आपकी इस रचना ने तो एक तूफ़ान सा मचा दिया मेरे अन्दर
अभी तक हवाओं के अंधड़ थमे नहीं

कविता रावत said...

Gahare marm liye aapki kavita aapke blog apnatva ko saarthak karti huee... vastav mein hum kuchh baten, ghatnayen man par gahra asar karti hain....
Sabhar..

Unknown said...

बहुत ही मर्म स्पर्शी कविता. दिल की वात दिल से दिल तक.

Udan Tashtari said...

मर्म स्पर्शी रचना!!


वैसे ऐसी ही एक रोटी का टुकड़ा जो महात्मा गाँधी ६२ साल पहले पकड़ा गये थे, पूरा भारत आज तक चूस रहा है!!!

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

बहुत बहुत बधाई ..

shama said...

Bachhee hokar bhi kitni sayani thi wah! Aapne to rula diya!

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही कहा फिर बचपन की यादें तो बहुत याद आती हैं । अपने नाम के अनुरूप रचना की बनावट है बधाई

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!

sangeeta said...

some incidents leave a deep impact on our mind , even while reading this i could not stop thinking about that whole family....

thank you for connecting with me and being with me in this time...