दादी कहती थी खिसियानी बिल्ली छीका नोंचे ।
शायद ये मुहावरा आज की परिस्थिती मे सरकार के लिये उपर्युक्त है ।
देशहित के लिये
सशक्त लोकपाल
के मुद्दों को ले
अडिग है हमारे अन्ना ।
बे सिर पैर के नित
इलज़ाम लगा रही
हमारी सरकार गयी है
पूरी तरह से भन्ना ।
Sunday, December 25, 2011
Tuesday, August 30, 2011
दाना
आइये हम सभी सोंचे कि क्या हम दाना बन सकते है जो माटी मे किसी अभिप्राय को ले मिलने को तैयार है ........ ?
देखिये अन्नाजी किस दाने की बात कर रहे है और किससे कर रहे है ?
ये बहुत साल पहिले का भाषण है ।
मै बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आत्मीय शैलेन्द्रजी की जिन्होंने ये लिंक मुझे भेजा । इनकी शख्सियत के बारे मे कुछ तारीफ करने बैठी तो शर्तिया शव्द कम पड़ेंगे । उनकी भेजी मेल आपके समक्ष है निवेदन है कि ये लिंक आप भी अपने आत्मजो को भेजिये जैसे कि मै कर रही हूँ ।
धन्यवाद
Saritaji,
Namashkar.
This is an awesome and amazing gem of a speech by Annaji at a Youth camp at Ralegoan Siddhi some years ago.
Pl click on this link:
http://www.youtube.com/watch?v=0vJD6TzsmA0&feature=related
Request you to please listen to it.This is a must watch video!!(25 mts)
I am sure, you will agree- these words spoken by Annaji... particularly the youth will have more than something to take home from it!!
Perhaps you could post it on your blog and also circulate it to other groups,friends and family.
Kindly let me have your views.
Regards
Shailendra
देखिये अन्नाजी किस दाने की बात कर रहे है और किससे कर रहे है ?
ये बहुत साल पहिले का भाषण है ।
मै बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आत्मीय शैलेन्द्रजी की जिन्होंने ये लिंक मुझे भेजा । इनकी शख्सियत के बारे मे कुछ तारीफ करने बैठी तो शर्तिया शव्द कम पड़ेंगे । उनकी भेजी मेल आपके समक्ष है निवेदन है कि ये लिंक आप भी अपने आत्मजो को भेजिये जैसे कि मै कर रही हूँ ।
धन्यवाद
Saritaji,
Namashkar.
This is an awesome and amazing gem of a speech by Annaji at a Youth camp at Ralegoan Siddhi some years ago.
Pl click on this link:
http://www.youtube.com/watch?v=0vJD6TzsmA0&feature=related
Request you to please listen to it.This is a must watch video!!(25 mts)
I am sure, you will agree- these words spoken by Annaji... particularly the youth will have more than something to take home from it!!
Perhaps you could post it on your blog and also circulate it to other groups,friends and family.
Kindly let me have your views.
Regards
Shailendra
Friday, August 26, 2011
Sunday, August 21, 2011
मेरी दादी
मेरी दादी का स्वर्गवास हुए तकरीबन पचास साल होने को है पर उनके व्यक्तित्व ने अमिट छाप छोडी है मुझ पर । मेरी दादी कितनी पढी लिखी थी पता नहीं हाँ जैनधर्म के कई पाठ जो संस्कृत मे थे वे उन्हें कंटस्थ थे और वो मंदिर मे अर्थ सहित उनकी व्याख्या कर अन्य साथी दर्शनाभिलाषी आई महिलाओं को सुनाती थी । और बात बात पर मुहावरे और कहावतों का उपयोग करना उनके बाँये हाथ का खेल था । :)
अरे वाह मैंने भी मुहावरा इस्तेमाल किया ...........हूँ भी तो उन्ही की पोती ।
आजकल जो वर्तमान स्थिती चल रही है उससे अवगत सभी है । पूरे देश मे हलचल मची है पर ऐसे मे भी सरकार का रूखा रवैया गैर जिम्मेदाराना लग रहा है ।
आज फिर दादी की याद आ गयी ।
मेरे दिमाग मे आ रहा था कि आज अगर दादी होती तो आज के हालात के सन्दर्भ मे वे क्या कहती कौनसा मुहावरा इस्तेमाल करती सरकार के लिये ?
घोड़े बेच कर सोना ( शायद नहीं )
या
कानो पर जूं तक नहीं रेंगना ( शायद उपयुक्त )
हम अब बस अनुमान ही लगा सकते है ...........
अरे वाह मैंने भी मुहावरा इस्तेमाल किया ...........हूँ भी तो उन्ही की पोती ।
आजकल जो वर्तमान स्थिती चल रही है उससे अवगत सभी है । पूरे देश मे हलचल मची है पर ऐसे मे भी सरकार का रूखा रवैया गैर जिम्मेदाराना लग रहा है ।
आज फिर दादी की याद आ गयी ।
मेरे दिमाग मे आ रहा था कि आज अगर दादी होती तो आज के हालात के सन्दर्भ मे वे क्या कहती कौनसा मुहावरा इस्तेमाल करती सरकार के लिये ?
घोड़े बेच कर सोना ( शायद नहीं )
या
कानो पर जूं तक नहीं रेंगना ( शायद उपयुक्त )
हम अब बस अनुमान ही लगा सकते है ...........
Friday, August 12, 2011
खिवैया
तुमसे बिछड़े
हिसाब नहीं
बीते कितने
माह और दिन
जिन्दगी जो थम
ही सी गयी थी
रेंगने लगी है
अब तुम बिन
जब भी अपने
सभी लोग
आपसमे मिलते है
बड़े ही स्नेह
और प्यार से
तुम्हे याद करते है
लाख मन को समझाए
खलती है तुम्हारी कमी
बहुत संभालती हूँ
पर उतर ही आती है
सूनी आँखों मे नमी
याद आता है
तुम्हारा सब को
साथ लेकर चलना
प्यार आत्मियता से
सभी से मिलना
तुम्हारा मुस्कुराता
स्नेही चेहरा
नयनो से कंहा
ओझल हो पाता है
जब भी होती हूँ
परेशान या उदास
तुम्हे महसूस करती हूँ
अपने ही आस पास
तुम्हारी सुलझी सोच
और सकारात्मक रवैया
मेरे जीवन मे उतर आते
है बन कर खिवैया ।
हिसाब नहीं
बीते कितने
माह और दिन
जिन्दगी जो थम
ही सी गयी थी
रेंगने लगी है
अब तुम बिन
जब भी अपने
सभी लोग
आपसमे मिलते है
बड़े ही स्नेह
और प्यार से
तुम्हे याद करते है
लाख मन को समझाए
खलती है तुम्हारी कमी
बहुत संभालती हूँ
पर उतर ही आती है
सूनी आँखों मे नमी
याद आता है
तुम्हारा सब को
साथ लेकर चलना
प्यार आत्मियता से
सभी से मिलना
तुम्हारा मुस्कुराता
स्नेही चेहरा
नयनो से कंहा
ओझल हो पाता है
जब भी होती हूँ
परेशान या उदास
तुम्हे महसूस करती हूँ
अपने ही आस पास
तुम्हारी सुलझी सोच
और सकारात्मक रवैया
मेरे जीवन मे उतर आते
है बन कर खिवैया ।
Friday, August 5, 2011
छुई मुई
नदी जब
पहाड़ी पथरीले
रास्ते से
गुजरती है
चट्टानों से
टकरा टकरा कर
कल कल नाद
करते हुए
बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।
पर मैंने
इसका वो
शांत सौम्य
और गंभीर
स्वरुप भी
देखा है
जब इसने
स्वयं के
अस्तित्व को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।
अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
ये कविता मैंने दो साल पहिले लिखी थी अब दो वर्ष बाद इसे दो पाठक मिले । सुषमाजी और संगीता जी . इन्होने कमेन्ट भी छोडे है मुझे लगा कि शायद पढने लायक रही होंगी इसीसे फिर से पोस्ट कर रही हूँ....कट पेस्ट नहीं किया है फिर से अपने भावो को शव्द दिए है.....तब इसका शीर्षक अनुभूति था अब मन कह रहा है इसका नाम छुई मुई रखू।
पहाड़ी पथरीले
रास्ते से
गुजरती है
चट्टानों से
टकरा टकरा कर
कल कल नाद
करते हुए
बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।
पर मैंने
इसका वो
शांत सौम्य
और गंभीर
स्वरुप भी
देखा है
जब इसने
स्वयं के
अस्तित्व को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।
अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
ये कविता मैंने दो साल पहिले लिखी थी अब दो वर्ष बाद इसे दो पाठक मिले । सुषमाजी और संगीता जी . इन्होने कमेन्ट भी छोडे है मुझे लगा कि शायद पढने लायक रही होंगी इसीसे फिर से पोस्ट कर रही हूँ....कट पेस्ट नहीं किया है फिर से अपने भावो को शव्द दिए है.....तब इसका शीर्षक अनुभूति था अब मन कह रहा है इसका नाम छुई मुई रखू।
Sunday, July 24, 2011
Wednesday, June 29, 2011
रंग
जब दिल और
दिमाग मे
छिड जाती है
कभी जंग ।
धड़कने बड़
ही जाती है
मन शांति हो
जाती है भंग
सुकून है
आत्मविश्वास
सदा रहता
है मेरे संग ।
नई कूची से
भरता रहता
ये जीवन मे
नये नये रंग ।
दिमाग मे
छिड जाती है
कभी जंग ।
धड़कने बड़
ही जाती है
मन शांति हो
जाती है भंग
सुकून है
आत्मविश्वास
सदा रहता
है मेरे संग ।
नई कूची से
भरता रहता
ये जीवन मे
नये नये रंग ।
Wednesday, May 25, 2011
मनवा
जुदाई को ले
जब भी दिल
भारी होता है
उदासी मन पर
छा जाती है
ठीक तभी
मीठी यादे मुझे
बहलाने पास
चली आती है
नहीं रहते हम
यों तब तनहा
स्मृतियों मे रम
जाता है मनवा ।
जब भी दिल
भारी होता है
उदासी मन पर
छा जाती है
ठीक तभी
मीठी यादे मुझे
बहलाने पास
चली आती है
नहीं रहते हम
यों तब तनहा
स्मृतियों मे रम
जाता है मनवा ।
Wednesday, May 11, 2011
सवाल ( 2 )
दूसरो की कमियाँ
निकालने मे हम को
ना जाने इतना
आनंद क्यों आता है ?
पर जब दूसरे हमे ले
ये ही काम करे तो
हमारा खून तुरंत
खौल क्यों जाता है ?
निकालने मे हम को
ना जाने इतना
आनंद क्यों आता है ?
पर जब दूसरे हमे ले
ये ही काम करे तो
हमारा खून तुरंत
खौल क्यों जाता है ?
Monday, May 2, 2011
तटस्थ
अपनों के दुःख
दिल के करीब
आ बसते है और
अपने ही लगते है।
मिलते तो है सभीसे
पर अपने विचार
नहीं बाँट पाते
अब हम किसीसे ।
तभी तो सभी
की नजरो मे
अब यूं ही
तटस्थ से लगते है ।
अपनी प्रिय सहेली को खोने के बाद एहसास हुआ कि हर किसी से मन की बात नहीं की जा सकती । हमारी सोंच की सतह पर आकर उसी कोण से मसले को समझना सुनना और देखना सब के बस की बात भी तो नही ।
दिल के करीब
आ बसते है और
अपने ही लगते है।
मिलते तो है सभीसे
पर अपने विचार
नहीं बाँट पाते
अब हम किसीसे ।
तभी तो सभी
की नजरो मे
अब यूं ही
तटस्थ से लगते है ।
अपनी प्रिय सहेली को खोने के बाद एहसास हुआ कि हर किसी से मन की बात नहीं की जा सकती । हमारी सोंच की सतह पर आकर उसी कोण से मसले को समझना सुनना और देखना सब के बस की बात भी तो नही ।
Monday, April 25, 2011
आभास
एक माह बीता
आभास साथ है
जैसे कि तुम सब
देख और सुन रही
मेरी खिड़की
के हिस्से आए
मुट्ठी भर
आसमान पर
घनघोर अंधेरी
आभास साथ है
जैसे कि तुम सब
देख और सुन रही
मेरी खिड़की
के हिस्से आए
मुट्ठी भर
आसमान पर
घनघोर अंधेरी
रात के
सीने को चीर
बदली की ओंट से
कल एक प्यारा
तारा झाँका था
उसकी चमक
चकाचोंध कर गयी
तुम कंही वो
ही तो नही ।
सीने को चीर
बदली की ओंट से
कल एक प्यारा
तारा झाँका था
उसकी चमक
चकाचोंध कर गयी
तुम कंही वो
ही तो नही ।
Tuesday, April 19, 2011
झील
शैल !
जब भी
किसी से
तुम्हारा जिक्र
होता है
आँखे झील
बनती है
और फिर
यादे यँहा
तैरना शुरू
कर देती है
समय थम
सा जाता है
साथ बीता
हर पल तब
मेरे पास
यूं स्वयं
लौट आता है ।
जब भी
किसी से
तुम्हारा जिक्र
होता है
आँखे झील
बनती है
और फिर
यादे यँहा
तैरना शुरू
कर देती है
समय थम
सा जाता है
साथ बीता
हर पल तब
मेरे पास
यूं स्वयं
लौट आता है ।
Wednesday, April 13, 2011
लाचार
जब मक्कारी
डंके की चोट पर
खुबसूरत शब्दों का
लिवास ओढ़े
सभीको भरमा
बड़ी आसानी से
अपना सिक्का जमाए ।
तब उस समय
असलियत बेचारी
सादगी मे लिपटी
दबे पाँव वंहा से
शर्मींदगी से
डंके की चोट पर
खुबसूरत शब्दों का
लिवास ओढ़े
सभीको भरमा
बड़ी आसानी से
अपना सिक्का जमाए ।
तब उस समय
असलियत बेचारी
सादगी मे लिपटी
दबे पाँव वंहा से
शर्मींदगी से
लाचार हो
अदृश्य ही हो जाए ।
अदृश्य ही हो जाए ।
Monday, April 4, 2011
करीने
वो चली गयी
सदा के लिये
सफर पर
हम सभी को
तनहा छोड़
भावनाए पीछा
कर रही
लगा रही
अब भी दौड़
जानती हूँ वो
अब लौट कर
कभी नही आएगी
अब यादे ही
साथ निभाएंगी
साथ बीते
कीमती लम्हों को
करीने से
लगाना है
यूं अभी व्यस्त
रहने का
मुझे मिल गया
बहाना है ।
२१ साल का साथ था हमारा । मुझसे बहुत छोटी भी थी ।
शैल तुम बहुत प्यारी हिम्मत वाली रही बड़ी सहजता से अपने दर्द को सहा पर उस दिन ना जाने कैसे तुम्हारा दर्द आँखों मे उतर आया और मेरी भावनाओ की पगडंडी पर दबे पाव चलता हुआ सीधे दिल मे उतर गया । अब तुम सदैव मेरे साथ हो ।
ये कैंसर दुबारा आ जाए तो किसी को नही बख्शता । जमीन आसमान एक कर दिया था शैलेन्द्र ने पर उनकी एक ना चली ।
cyber knife doctors टीम के सभी प्रयास विफल रहे ।
कल तेरही थी हम सब इकठ्ठा हुए थे और तुम्हारी जगह एक तस्वीर थी ......उफ तुम्हारे सभी परिचितों रिश्तेदारों और सहेलियों के चेहरों पर तुम्हे खोने का दर्द साफ़ दिख रहा था.......
तुमने हमारे दिलो पर राज किया था और सदैव करोगी ।
सदा के लिये
एक लम्बे
सफर पर
हम सभी को
तनहा छोड़
भावनाए पीछा
कर रही
लगा रही
अब भी दौड़
जानती हूँ वो
अब लौट कर
कभी नही आएगी
अब यादे ही
साथ निभाएंगी
साथ बीते
कीमती लम्हों को
करीने से
लगाना है
यूं अभी व्यस्त
रहने का
मुझे मिल गया
बहाना है ।
२१ साल का साथ था हमारा । मुझसे बहुत छोटी भी थी ।
शैल तुम बहुत प्यारी हिम्मत वाली रही बड़ी सहजता से अपने दर्द को सहा पर उस दिन ना जाने कैसे तुम्हारा दर्द आँखों मे उतर आया और मेरी भावनाओ की पगडंडी पर दबे पाव चलता हुआ सीधे दिल मे उतर गया । अब तुम सदैव मेरे साथ हो ।
ये कैंसर दुबारा आ जाए तो किसी को नही बख्शता । जमीन आसमान एक कर दिया था शैलेन्द्र ने पर उनकी एक ना चली ।
cyber knife doctors टीम के सभी प्रयास विफल रहे ।
कल तेरही थी हम सब इकठ्ठा हुए थे और तुम्हारी जगह एक तस्वीर थी ......उफ तुम्हारे सभी परिचितों रिश्तेदारों और सहेलियों के चेहरों पर तुम्हे खोने का दर्द साफ़ दिख रहा था.......
तुमने हमारे दिलो पर राज किया था और सदैव करोगी ।
Sunday, March 27, 2011
सवाल ( १ )
अभावों का बस
जंहा देखो वंहा
होता ही रहता
है क्यों जिक्र ?
इसमें नाहक समय
बर्बाद हो रहा
इसकी क्यों नही होती
किसी को तनिक फ़िक्र ?
जंहा देखो वंहा
होता ही रहता
है क्यों जिक्र ?
इसमें नाहक समय
बर्बाद हो रहा
इसकी क्यों नही होती
किसी को तनिक फ़िक्र ?
Sunday, March 20, 2011
होली और जज़्बात
चलिये आज हम सब
जाति धर्म के नाम
फूट डालने वाले जज्वातों को
होली के साथ भस्म कर डाले ।
" खून का रंग एक है "
इस नारे के साथ
भाई चारे का पैगाम
हर रंग मे रंग नीले आसमां तले
मिलकर बिखेर डाले।
ये ही जज़्वात पिछले साल भी मैंने ज़ाहिर किये थे ।
जाति धर्म के नाम
फूट डालने वाले जज्वातों को
होली के साथ भस्म कर डाले ।
" खून का रंग एक है "
इस नारे के साथ
भाई चारे का पैगाम
हर रंग मे रंग नीले आसमां तले
मिलकर बिखेर डाले।
ये ही जज़्वात पिछले साल भी मैंने ज़ाहिर किये थे ।
Friday, January 14, 2011
शुभकामनाएँ
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!!
गत कई सप्ताह से वर्टिगो से ग्रस्त हूँ नए वर्ष का आरम्भ ही बड़ा अलसाया सा शुरू हुआ है ।
ना कुछ पढ़ा ना कुछ लिखा बस आराम का दौर चल रहा है विश्वास है जल्दी ही सुधार होगा ।
मुझे भी प्रतीक्षा है फिर से ब्लॉग से जुड़ने की ।
गत कई सप्ताह से वर्टिगो से ग्रस्त हूँ नए वर्ष का आरम्भ ही बड़ा अलसाया सा शुरू हुआ है ।
ना कुछ पढ़ा ना कुछ लिखा बस आराम का दौर चल रहा है विश्वास है जल्दी ही सुधार होगा ।
मुझे भी प्रतीक्षा है फिर से ब्लॉग से जुड़ने की ।
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