Thursday, October 28, 2010

शाल के दिल से (बहिन की कलम से)

बड़े ही व्यस्त रहे इन दिनों दिवाली की सफाइयां जो चल रही थी । घर के अन्य कामो के साथ अपनी अलमारिया नये सिरे से जमाई । कपड़ो के नीचे के पेपर बदले गए । कभी कभी ऐसा करते समय कुछ खोया मिल जाए तो खुशी सारी थकान ही मिटा देती है आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । मेरे हाथ एक छोटा सा कार्ड हाथ आया और साथ ही आई उससे जुडी यादे और खुशी के आंसू ।

कुछ साल पहिले की बात है हम झांसी शादी मे गए हुए थे सर्दियों की बात है मेरी चचेरी बहिन जो कोटा मे रहती है वो भी आई थी वो मेरे लिये एक बहुत मुलायम ऊनी शाल भेंट स्वरुप लाई थी तांकि मै शादी मे इस्तेमाल कर सकू । एक राज़ की बात बताऊ.अगर हम महिलाए बढ़िया साड़ी पहिने है और शाल बढ़िया नहीं है तो ठिठुरते रहेंगे पर सर्दी लग रही है ये कबूल नहीं करेंगे ।
इसी शाल के साथ ये कार्ड लगा हुआ था कुछ पंक्तियों के साथ आइये पड़ते है ........शाल क्या कह रहा है मुझसे ..........

मै गुनगुनाती धूप की तरह हूँ

दुलार भरी तपिश है मेरी

तुमको प्यार से समेट लू

ये आरज़ू है मेरी ।

शिशु सा कोमल स्पर्श

निर्मल भावना है मेरी

" सरिता " हो ऐसी ही

निश्चल बहती रहो

यही गुज़ारिश है मेरी ।

Saturday, October 16, 2010

पुण्यतिथी

आज मेरे बाबूजी की पुण्यतिथी है । सुबह से कई वार कुछ लिखने का प्रयत्न कर चुकी हूँ पर याद आते ही आँखे छलछला जा रही है । लाख कोशिश के बावजूद कुछ सफलता हाथ नहीं लग रही है ।
१९८० मे आज के दिन उनका साथ छूटा । मेरी बेटिया छोटी थी और ये बाहर गये हुए थे इसीसे मै हैदराबाद समय पर नहीं पहुच पाई ।
आज इतने वर्ष गुजर गए पर हर दुविधा की घड़ी मे उनके आदर्श मार्ग दर्शन करने मे उतने ही सक्षम है । उनका परिचय क्या दू ?
मेरे बाबूजी Advocate थे । इलाहाबाद से पढाई की थी वे गोल्ड मेडलिस्ट थे ।
मेरे बाबूजी ने जीवनपर्यंत खादी ही पहनी ।
आखिर समय तक वे स्वावलम्बी रहे ।
मेरे बाबूजी चलती फिरती dictionary थे ।
दुविधा तो हमे तब होती जब एक शव्द के कई अर्थ बता देते ।
जीवन के अंतिम 10,12 ,साल बाबूजी कों लकवा रहा । पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । बाया हाथ और पाँव पूरी तौर पर काम नहीं करते थे पर वे तबभी अपने कपड़े स्वयम ही धोते थे । अपना सभी काम वे स्वयं करते थे ।
और दोनों घुटनों के बीच कपड़ा दबा कर एक हाथ से निचोड़ते थे ।
हमेशा सकारात्मक सोच रखने की दलील सामने रखते थे ।
जिसकी भी जो भी मदद कर सकते थे उन्होंने की ।
मेरे बाबूजी का नाम सूरज और हम बहिनों के भी नाम स से ही है ।
मै बहुत छोटी थी पर मुझे आज भी याद है गर्मी के दिन थे हम छत पर सोते थे उस दिन बाबूजी ने तारे और चाँद के बारे मे बहुत कुछ बताया था मैंने उन्ही भावो कों एक कविता मे उकेरा था वो आज फिर सामने रख रही हूँ।
तारे
दिन मे
इनका कोई
अस्तित्व नहीं
सूर्य के उदय
होते ही ये
धुंधलाते है
और फ़िर
विलीन
हो जाते है

पर काली
अंधेरी रात
इसकी तो
अलग ही
हो जाती
है बात |

आकाश मे
चन्दा के
राज्य मे
तारो का
झिलमिलाना
टिमटिमाना
जगमगाना
मेरे दिल को
लुभा जाता है |

कुछ बड़े तारे
कुछ छोंटे तारे
पर सबका
मिलजुल कर
साथ - साथ
पर कुछ दूरी
बना कर रहना |
चाहों अगर
कुछ सीखना
तो ये हमें
बहुत कुछ
सिखा जाता है |

दिन भर का
मेरा भटका
थका हारा मन
तारो की
ओड़नी ओडे इस
आसमान के
आँगन
बड़ी राहत
पा जाता है

और कुछ
ही पलो मे
नभ की
गोद मे
खेल रहे
तारो से खूब
घुल -मिल
सा जाता है |

और अब
शुरू हो
जाता है मेरा
तारा समूह को
खोजना
पहचानना |
वैसे तो
ये है 88
पर मेरी नज़रे
सप्त ऋषी मंडल
पर जा कर
ही लेती है टेक |

जब से
होश संभाला
और मेरे
बाबूजी ने
इनसे मेरा
परिचय कराया
बराबर रहा है
साथ हमारा |

गाँव छूटा
शहर बदले
मेरे बाबूजी भी
बरसों पहले
साथ छोड़ चले |
पर तारा मंडल ने
नहीं छोडा
कभी भी
मेरा साथ |

धन्य हूँ
और
आभारी भी
प्रकृति की
पा कर
अतुलनीय
ये सौगात |

Wednesday, October 13, 2010

राम भरोसे

राजनीति का

लगता है

शराफत से नही

रहा अब

कोई भी मेल

नेताओं की

अजीब ही

फितरत है

देख रहे है

इनके नित नये

घिनौने खेल

कुर्सी के

चक्कर मे ये

सभ्यता कों भूले

लालच के चारे

के आगे

हवा मे ही

ये झूले

जिसकी थैली भारी

उसी ओर

ये लुडक जाए

बिना पेंदी के लोटे

तभी तो ये कहलाए

कंहा तक

किस किस कों

कैसे कैसे कोसे

आम आदमी

तो है अब

सच मानिये

राम भरोसे ।

Saturday, October 9, 2010

खोट

जब इंसान

का मन

हो अशांत

चारो ओर

भी तब वो

अशांति ही

फैलाता है

कोई कहे एक

बदले मे चार

वो सुना कर

ही चैन

अथाह पाता है

इस समय वो

दूसरो की

झूठी तारीफ

सुनकर भी

पूरा जल भुन

सा जाता है

मजेदार बात

ये है कि

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ।

Tuesday, October 5, 2010

आंकड़ा

जब भी आपस मे

समझ काम न आए

छोटी सी बात

तब नाहक ही

तिल का ताड़ बन जाए

३६ का आंकड़ा है

लोग कह इसे टाल जाए

इस आंकड़े से हर कोई

पता नहीं क्यों जी

बहुत ही घबराए

और एक हम है कि

बस उसको भी

उलटा ही कर दिखाए

तभी तो पूरे ६२

वर्ष उम्र पार कर

६३ वे मे है चले आए ।

( हा हा हा हा हा )

ये ही एक ऐसा

मन्त्र है जिसे अपना

दुःख भगा सुख पाए ।