Sunday, May 30, 2010

कुंठा

जब मानव अपने

स्वयं के बनाए

कुंठाओं के जाल मे

बुरा फंस जाता है ।

आत्म विश्वास तो

फिर खोता ही है

व्यक्तित्व भी उसका

उभर नहीं पाता है ।

Thursday, May 27, 2010

शौक

बाल की खाल
निकालना होता है
कईयों का शौक
ये भी एक
विकार ही है
कठिन है
लगाना पर रोक ।

शांति प्रिय
मानस कभी
माफी मांगते
ना अलसाए
फलो से लदी
शाखाएँ भी
हमने देखी
झुकती ही जाए ।

Thursday, May 13, 2010

दोषारोपण

जब वातावरण मे

बे बुनियाद

दोषारोपण का

खेल शुरू हो जाता है ।

तब विवेक

सच मानिये

सारे घोड़े बेच कर

सुख की नींद

चैन से सो जाता है ......................

Monday, May 10, 2010

मेरी दादी

मेरी दादी सचमुच मे कहावतो का भंडार थी । हर अवसर पर एक कहावत बोल देती थी । हम बच्चे खेलते खेलते किसी भाई बहिन की शिकायत लेकर जब उनके पास जाते थे वे किसी का कोई पक्ष नहीं लेती थी बस हंस कर कह देती थी ।

क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

बस बड़े माफ़ कर देते थे और खेल फिर शुरू हो जाता था ।

अब जीवन के अनुभवों से जो सीखा है लगता है दो पंक्तिया इसमे अपनी जोड़ ही दे ।


क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

( दो के बीच मे )

तीसरा पक्ष ले बोल पड़े
तभी बडती है बात

Saturday, May 8, 2010

पहेली

जो भाग्य को

सर्वोपरी मानते है

और हालात से

जूझते नहीं

वे जीवन को

पहेली तो मानते है

पर उसे कदापि

बूझते नहीं ।

Tuesday, May 4, 2010

अवसर

मेरे घर के
द्वार की कुंडी
किसी ने आकर
खटखटाई
व्यस्त थी मैंने
भीतर से ही
आवाज़ लगाई
पूछा कौन ?
वो खड़ा था
एकदम मौन ।
फिर बोला
मै हूँ अवसर
लोग मुझे पा
जिन्दगी बनाते है
मुझे खो दे तो
बड़ा पछताते है
मैंने मन ही
मन सोचा
परिचय देने की
ऐसी क्या
आन पडी ?
कई प्रतीक्षा
करते है
इसका हाथ
पर हाथ रख
हर घड़ी ।
मै मंद मंद
मुस्काई
उसे लगा मै
उसे पहचान
नहीं पाई ।
मैंने कंहा
तुम तो सदैव
साथ रहते हो
फिर क्यों
आगंतुक बन
आकर मुझे
छलते हो ?
जो करले
समय का
सदुपयोग
नाम तुम्हारा
होता है ।
जंहा होता है
दुरूपयोग
भाग्य उन्ही का
सोता है ।
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।

Saturday, May 1, 2010

पकड़

भावनाओं पर
सोंच की पकड़
रखनी पडती ही
है बड़ी मज़बूत ।
भाव तांकि
फिसल बहा ना
ले जाए विचारों
की सार्थकता
फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ।