स्वतंत्र भारत मे
ही मै जन्मी
बात है तब की
जब थी मै नन्ही ।
जबसे आया था मुझे होश
चारों ओर पाया था
एक नया ही जोश ।
कांग्रेस के हाथ थी तब
सत्ता की बागडोर ।
पंच वर्षीय योजनाओं का
शुरू हुआ था नया दौर ।
मुझे अच्छी तरह याद है
जब भी हमारे छोटे
गाँव नागौर मे
कोई भी नेता आते थे।
मेरे बाबूजी व सभी कांग्रेसी
चरखे पर सूत
कातने जुट जाते थे।
फिर कते सूत की लच्छीया
बनाई जाती थी ।
और हार की तरह सम्मान मे
श्रद्धेय नेताओं के
गले मे पहनाई जाती थी ।
पाठशालाओं मे भी
सूत कातना सिखाया जाता था ।
आजादी अंहिसा के मार्ग
पर चल कर ही मिली
ये बड़े गर्व से बताया जाता था ।
ईमानदारी , त्याग की भावना
वो देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश
जो नेताओं की
रग रग मे बहता था ।
वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।