Sunday, December 19, 2010

निर्भर

दुनियां मे
अच्छा - बुरा
दुःख - दर्द
तेरा - मेरा
ऊँच - नीच
झूट - सच
प्यार - फटकार
जात - पात
चारों ओर
सभी कुछ
नजर हमे
है आए ।
आप कंहा
किस पर
क्योकर
कितनी
अपनी
तवज्जु दे
क्या बटोरे
क्या छांटे
क्या सबमे
कितना बांटे
ये तो आपकी
सूझ - बूझ
परखने की
योग्यता
पर ही
निर्भर हो
रह जाए ।

Saturday, December 11, 2010

आत्मीयता

मेरी बड़ी बेटी के जीवन मे एक समय ऐसा था कि हर रविवार वो एक ख़ास रेस्टारेंट की एक ख़ास स्वीट डिश खाए बिना नहीं रह पाती थी ये दौर पूरे नौ महिने चला पर जैसे ही मातृत्व की जिम्मेदारी आई सब छूट गया।ना ही वो स्वाद याद रहा उसे । कल करीब १५ महिने बाद जब हम सेनफ्रांसिस्को के हॉस्पिटल से लौट रहे थे बहुत देर हो गयी थी सोचा कि खाना बाहर ही खा लिया जाए हम लोग उसी पुराने रेस्टोरेंट पहुचे देखते क्या है कि खाना ख़तम होते ही मेनेजर स्वयं उठ कर आए बिटिया से बात कीउसके बेटे से प्यार से मिले और उसकी पसंदीदा स्वीट डिश ऑफर की अपनी तरफ से । मै तो हतप्रभ थी .............उसे क्या पसंद था ये याद रखना..................लम्बे अन्तराल के बावजूद ............. सच ही विस्मित कर गया । लगता है आत्मीयता की कोई कोई राष्ट्रीयता नहीं होती सीमाए नहीं होती ।
मुझे तो इसे बटोरना बिखेरना दौनो ही बहुत पसंद है ।

मेरी बिटिया की knee surgery हुई है इसी से ब्लॉग पर नियमितता नही रही लेप टॉप का charger भी यंहा लेलिया है अब सावधान हो जाइये टिप्पणियों की बौछार से जो बचना है ।

Thursday, December 9, 2010

डोर

रिश्तो की डोर

मजबूत करने

को ही जिसने

जीवन का सही

सार समझा ।

सच मानिये

उनके जीवन मे

सब मसले

हल हो जाते है

कुछ न रह

जाता उलझा ।

Wednesday, December 1, 2010

एक साईट सोचने पर मजबूर करती

मुझे पूरा विश्वास है कि आपको सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा यंहा आकर.........
हमारा हर बात कों लेकर नकारात्मक रवैया क्या ठीक है........?
क्या ये अपनी जिम्मेदारियों से मुह मोड़ने जैसा नहीं है...........?
http://theuglyindian.com

Sunday, November 28, 2010

नखरा..

चार्जेर रूठा या ,
या बेटरी की कमर है टूटी
इसी वजह से
टीका टिप्पणी की लत है छूटी।

मनचाहे ब्लोगों से ,
दूर रहना है अखरा,
पर क्या करें है मजबूरी,
लैपटॉप दिखा रहा है नखरा।




Friday, November 19, 2010

विजयी

ऐसा नहीं कि
हमने दुःख कभी
भी नही झेले
मुसीबत जब
भी आन पड़ी
हमने भी तो
बहुत पापड़
जीवन मे है बेले ।
नहीं आया तो
बस हां
अपने दुखो की
नुमाईश करना
बिलकुल नही आया ।
दुःख दूसरो कों बता
हमारे अपनों का
मन
भारी करने से
कम
कैसे होता है ?
ये आज तक मुझे
समझ नहीं आया ।
सच तो ये है कि
विपदा की घड़ी
बहुत कुछ हमे
सिखा जाती है
अपने परायो मे
फर्क बता जाती है ।
आत्मबल ही
हमे निराशा से
उबारता है
विषम परिस्थिती
से जूझना भी
ये ही तो सदैव
हमे सिखाता है ।
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।

Sunday, November 14, 2010

बोली

थोड़े दिन पहिले बड़ी बिटिया से बात हो रही थी उसे अफ़सोस इस बात का था कि मै जो दो प्रांतीय भाषाए जानती हूँ राजस्थानी और बुन्देलखंडी वो मेरे साथ ही चली जाएंगी । ( मेरे घर से ) ....... अरे ऐसा उसने कहा नहीं बस तात्पर्य ये ही था ।मेरे अलावा किसी कों मेरे घर मे मारवाड़ी जो बोलना नहीं आता । बुन्देलखंडी तो ये भी बोल लेते है पर बच्चे सिर्फ अंग्रेज़ी ही बोलते है इसमे इनका भी कोई दोष नही दक्षिण मे ये ही हाल है सभी बच्चो का ।
इसी से मुझे लगा कि कुछ प्रयोग किये जाए ........ ।
" सुधि " उसीका उदाहरण मात्र है ।
आप माने या ना माने खडी बोली से ज्यादा मिठास प्रांतीय भाषाओ मे है ......
मेरी दो बेटिया विदेश मे है हिंदी छूटने का गम अब नहीं कई हिंदी ब्लोग्स से बेटिया मेरे माध्यम से जुडी है । मारवाड़ी की एक झलक यहाँ दे रही हूँ ।
मेरी एक बहिन की शादी लाडनू एक छोटे गाँव मे हुई थी उन दिनों हम नागौर मे रहते थे । जीजाजी मारवाड़ी ही बोलते थे ।
एक दिन की बात है .......
आगे मारवाड़ी मे ..........

नहीं नहीं करता भी पचास साल पहिले की बात है बी साल ही जीजी कों ब्याह हुयो थो पहली वार
जीजी न लेवान जीजाजी आयोडा हा ।
जीमता समय म ही पुरसगारी कर रही थी जब मै पापड़ आखिरमै लेर गयी तो म्हारस जीजाजी बोल्या सालीजी थोड़ी इन
चुनडी पहनार लाओसा .
मै तो समझी कोनी काई बोल रिया है ।
जीजी जल्दी से पापड़ पर घी डाल ऊपर से लाल मिर्चा बुकनी बुरक दी अन बोली अब लेजाओ ।
पापड़ जब सेक्यो जाव है सिकता ही उबड़ खाबड़ हो जाव है । बी पर अगर पिघ्ल्यो घी डाला तो चारो तरफ फ़ैल जाव ह ऊपर से मिर्ची भी घी के साथ फ़ैल जाव . लाडनू सुजानगढ़ मे पापड यान ही खाव है चाव स अब तो मसाला पापड़ सगला लोग पसंद करवा लाग्या ।घी और बीपर मिर्ची बुर्कोड्यो पापड़ बिलकुल यान ही लाग है कि कोई लाल चुनडी पहना दी हो
आज भी किस्सों याद आव तो हँसी आ जाव है........पापड़ अणि चूनड़ी हा हा हा हा ..........

Friday, November 12, 2010

सुधि

गत मॉस कैसे बीत गयो

हमनो कछु सुधि नाही

खयालों के जाल जो बुने

फंस रह गए बिन माही ।

Thursday, October 28, 2010

शाल के दिल से (बहिन की कलम से)

बड़े ही व्यस्त रहे इन दिनों दिवाली की सफाइयां जो चल रही थी । घर के अन्य कामो के साथ अपनी अलमारिया नये सिरे से जमाई । कपड़ो के नीचे के पेपर बदले गए । कभी कभी ऐसा करते समय कुछ खोया मिल जाए तो खुशी सारी थकान ही मिटा देती है आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । मेरे हाथ एक छोटा सा कार्ड हाथ आया और साथ ही आई उससे जुडी यादे और खुशी के आंसू ।

कुछ साल पहिले की बात है हम झांसी शादी मे गए हुए थे सर्दियों की बात है मेरी चचेरी बहिन जो कोटा मे रहती है वो भी आई थी वो मेरे लिये एक बहुत मुलायम ऊनी शाल भेंट स्वरुप लाई थी तांकि मै शादी मे इस्तेमाल कर सकू । एक राज़ की बात बताऊ.अगर हम महिलाए बढ़िया साड़ी पहिने है और शाल बढ़िया नहीं है तो ठिठुरते रहेंगे पर सर्दी लग रही है ये कबूल नहीं करेंगे ।
इसी शाल के साथ ये कार्ड लगा हुआ था कुछ पंक्तियों के साथ आइये पड़ते है ........शाल क्या कह रहा है मुझसे ..........

मै गुनगुनाती धूप की तरह हूँ

दुलार भरी तपिश है मेरी

तुमको प्यार से समेट लू

ये आरज़ू है मेरी ।

शिशु सा कोमल स्पर्श

निर्मल भावना है मेरी

" सरिता " हो ऐसी ही

निश्चल बहती रहो

यही गुज़ारिश है मेरी ।

Saturday, October 16, 2010

पुण्यतिथी

आज मेरे बाबूजी की पुण्यतिथी है । सुबह से कई वार कुछ लिखने का प्रयत्न कर चुकी हूँ पर याद आते ही आँखे छलछला जा रही है । लाख कोशिश के बावजूद कुछ सफलता हाथ नहीं लग रही है ।
१९८० मे आज के दिन उनका साथ छूटा । मेरी बेटिया छोटी थी और ये बाहर गये हुए थे इसीसे मै हैदराबाद समय पर नहीं पहुच पाई ।
आज इतने वर्ष गुजर गए पर हर दुविधा की घड़ी मे उनके आदर्श मार्ग दर्शन करने मे उतने ही सक्षम है । उनका परिचय क्या दू ?
मेरे बाबूजी Advocate थे । इलाहाबाद से पढाई की थी वे गोल्ड मेडलिस्ट थे ।
मेरे बाबूजी ने जीवनपर्यंत खादी ही पहनी ।
आखिर समय तक वे स्वावलम्बी रहे ।
मेरे बाबूजी चलती फिरती dictionary थे ।
दुविधा तो हमे तब होती जब एक शव्द के कई अर्थ बता देते ।
जीवन के अंतिम 10,12 ,साल बाबूजी कों लकवा रहा । पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । बाया हाथ और पाँव पूरी तौर पर काम नहीं करते थे पर वे तबभी अपने कपड़े स्वयम ही धोते थे । अपना सभी काम वे स्वयं करते थे ।
और दोनों घुटनों के बीच कपड़ा दबा कर एक हाथ से निचोड़ते थे ।
हमेशा सकारात्मक सोच रखने की दलील सामने रखते थे ।
जिसकी भी जो भी मदद कर सकते थे उन्होंने की ।
मेरे बाबूजी का नाम सूरज और हम बहिनों के भी नाम स से ही है ।
मै बहुत छोटी थी पर मुझे आज भी याद है गर्मी के दिन थे हम छत पर सोते थे उस दिन बाबूजी ने तारे और चाँद के बारे मे बहुत कुछ बताया था मैंने उन्ही भावो कों एक कविता मे उकेरा था वो आज फिर सामने रख रही हूँ।
तारे
दिन मे
इनका कोई
अस्तित्व नहीं
सूर्य के उदय
होते ही ये
धुंधलाते है
और फ़िर
विलीन
हो जाते है

पर काली
अंधेरी रात
इसकी तो
अलग ही
हो जाती
है बात |

आकाश मे
चन्दा के
राज्य मे
तारो का
झिलमिलाना
टिमटिमाना
जगमगाना
मेरे दिल को
लुभा जाता है |

कुछ बड़े तारे
कुछ छोंटे तारे
पर सबका
मिलजुल कर
साथ - साथ
पर कुछ दूरी
बना कर रहना |
चाहों अगर
कुछ सीखना
तो ये हमें
बहुत कुछ
सिखा जाता है |

दिन भर का
मेरा भटका
थका हारा मन
तारो की
ओड़नी ओडे इस
आसमान के
आँगन
बड़ी राहत
पा जाता है

और कुछ
ही पलो मे
नभ की
गोद मे
खेल रहे
तारो से खूब
घुल -मिल
सा जाता है |

और अब
शुरू हो
जाता है मेरा
तारा समूह को
खोजना
पहचानना |
वैसे तो
ये है 88
पर मेरी नज़रे
सप्त ऋषी मंडल
पर जा कर
ही लेती है टेक |

जब से
होश संभाला
और मेरे
बाबूजी ने
इनसे मेरा
परिचय कराया
बराबर रहा है
साथ हमारा |

गाँव छूटा
शहर बदले
मेरे बाबूजी भी
बरसों पहले
साथ छोड़ चले |
पर तारा मंडल ने
नहीं छोडा
कभी भी
मेरा साथ |

धन्य हूँ
और
आभारी भी
प्रकृति की
पा कर
अतुलनीय
ये सौगात |

Wednesday, October 13, 2010

राम भरोसे

राजनीति का

लगता है

शराफत से नही

रहा अब

कोई भी मेल

नेताओं की

अजीब ही

फितरत है

देख रहे है

इनके नित नये

घिनौने खेल

कुर्सी के

चक्कर मे ये

सभ्यता कों भूले

लालच के चारे

के आगे

हवा मे ही

ये झूले

जिसकी थैली भारी

उसी ओर

ये लुडक जाए

बिना पेंदी के लोटे

तभी तो ये कहलाए

कंहा तक

किस किस कों

कैसे कैसे कोसे

आम आदमी

तो है अब

सच मानिये

राम भरोसे ।

Saturday, October 9, 2010

खोट

जब इंसान

का मन

हो अशांत

चारो ओर

भी तब वो

अशांति ही

फैलाता है

कोई कहे एक

बदले मे चार

वो सुना कर

ही चैन

अथाह पाता है

इस समय वो

दूसरो की

झूठी तारीफ

सुनकर भी

पूरा जल भुन

सा जाता है

मजेदार बात

ये है कि

खोट अपने मे

तो एक भी

पाता नहीं

दूसरो मे हजार

खोज लाता है ।

Tuesday, October 5, 2010

आंकड़ा

जब भी आपस मे

समझ काम न आए

छोटी सी बात

तब नाहक ही

तिल का ताड़ बन जाए

३६ का आंकड़ा है

लोग कह इसे टाल जाए

इस आंकड़े से हर कोई

पता नहीं क्यों जी

बहुत ही घबराए

और एक हम है कि

बस उसको भी

उलटा ही कर दिखाए

तभी तो पूरे ६२

वर्ष उम्र पार कर

६३ वे मे है चले आए ।

( हा हा हा हा हा )

ये ही एक ऐसा

मन्त्र है जिसे अपना

दुःख भगा सुख पाए ।

Thursday, September 30, 2010

पेड़ और पतझड़

( पेड़ के मन से )

हर पतझड़

तेज हवा मेरा

चीर हरण करती है

और सामने वाले

पेड़ की टहनी

हवा मे झूम

खूब आनंद लेती है

पर मै उदास नहीं

ना ही कोई इर्षा

के भाव रखता हूँ

रात के बाद

आता है दिन

ये मै बखूबी

खूब समझता हूँ ।

खुश हूँ मेरे

सूखे पत्तो कों

इकठ्ठा कर

झोपड़ा पट्टी वाले

जला धुँआ पैदा कर

मच्छर भगा

खून चुसने से

अपने कों बचाते है

और सूखी

टहनियों कों जला

गरीब खाना पका

अपने उदर की आग

बुझाते है ।

सुना है कुछ सजग

पर्यावरण प्रेमी भी

मेरे सूखे पत्तो कों गला

कम्पोस्ट खाद बनाते है

और फिर यो पौधे

नवजीवन पा जाते है

दुःख है तो

बस इतना कि

थका पथिक

मेरे आंगन तले

छाव नहीं पाता है

बस निराश हो

आगे बड़ जाता है ।

कुछ प्रतीक्षा के बाद

होता है प्रकृति

का एक करिश्मा

मनभावन

बसंत आता है ।

ताज़े हरे कोमल

पत्तो से मेरी

टहनियों कों

वो सहर्ष स्वयं

पुनः सजाता है ।

Thursday, September 23, 2010

पारंगत

हम कमर कस कर

हो रहे है अब तैयार

सफाई करने १२०० की

फौज करली तैयार

लीपा पोती मे हम

है कितने माहिर

पारंगत इस कला में

होगा अब जग जाहिर ।












Wednesday, September 22, 2010

कोमनवेल्थ गेम्स .............क्या होगा ?
कालमाडी .............. क्या किया ?
कश्मीर ............. क्या हो रहा है ?

क क क

क कहर ढो रहा है ?
क पर कहर हो रहा है ?
क्या हो रहा है ?


Thursday, September 16, 2010

मेरा सपना

ईमानदारी
एक संक्रामक
रोग बन
फ़ैल जाए ।

स्वार्थ
बस दुनियां
से एकदम
लुप्त हो जाए ।

भाई - चारा
सब दिल से
हमेशा एक
दूसरे से निभाए ।

धरती भावी
कर्णधारों के लिये

बस जन्नत ही
हम बना जाए ।

Friday, September 10, 2010

दंग

जब भी जीवन

मे कर्तव्य और

इच्छाओं मे

छिड जाती है ज़ंग ।

कर्तव्य कैसे ?

बाजी मार ले जाता है

देख कर मै

रह जाती हूँ दंग ।

Sunday, August 15, 2010

आओ सींखे ( पुरानी कविता )

चट्टानों से टकरा कर भी
खिलखिलाना कोई लहरों से सीखे ।
हजारो राज़ अपने मे सहेज रखना
ये कला कोई सागर से सीखे ।

काँटों से घिरे रह कर भी
मुस्काना कोई गुलाब से सीखे ।
क्षमता से अधिक श्रम करने की
लगन कोई चींटी से सीखे ।

कुछ सीखना है तो प्रकृति
के पास शिक्षको की कमी नही ।
नि शुल्क सीखने की सुविधा
किसीको मिलेगी क्या कंही ?

Wednesday, August 4, 2010

लोक गीत ( राजस्थान के आँचल से )

म्हारी जनम जाटनी घर आई (जाट )
देख रे बलम म्हारी चतुराई ( जाटनी )
जाट ....
आ तो दौड़ी दौड़ी अजी दौड़ी दौड़ी
कन्दोइया क हाली है जी
कन्दोइया हाली
आप र तो लाडू बलम र सेंवा
छोकरा न जलेबी दिलाय लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई .............
जाटनी ..........
देख रे बलम म्हारी चतुराई ................

जाट .......
आ तो दौड़ी दौड़ी , अजी दौड़ी दौड़ी
कुम्हारा क हाली है जी कुम्हारा क हाली
आप र तो मटकों बलम र चाडो
अर छोकरा न घुड्ल्यो दिला लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई ..............
जाटनी ......
देख रे बलम म्हारी चतुराई .............

जाट .........
तो दौड़ी दौड़ी , अजी दौड़ी दौड़ी
कचहरी म चाली है जी कचहरी चाली
आप र तो माफ़ी बलम र फ़ासी
छोकरा को खोपड़ो फुडाय लाई ।
म्हारी जनम जाटनी घर आई ..............
जाटनी .......
देख रे बलम म्हारी चतुराई .............

इस गीत से नागौर मेरे जन्मस्थल की बहुत सी यादे जुडी है । मै आठ साल की रही होंगी जब जाट का किरदार रंगमंच पर निभाया होगा........याद आ रहा है नृत्य-नाटिका के बीच मे मेरी मूंछो पर ताव देते समय उनका हाथ मे आजाना और सब कुछ भूल पहिले उन्हें ठीक से चिपकाना...........बचपन के दिन भी क्या दिन थे............आज पचपन साल बाद भी कल की सी बात लग रही है.........

ये पोस्ट सतिशजी को dedicate कर रही हूँ ............
उनकी आज की पोस्ट से ही प्रेरणा पा ये दिन लौटा है......सारे शव्द उमड़ कर चले आए अतीत के साये से वर्तमान को धनी बनाने ।


इस लोक गीत से एक बात और स्पष्ट होती है कि ये भ्रम ही है कि नारी अबला है दबा दबा सा व्यक्तित्व ही उसका जीवन है।
यंहा जाट पति शिकायत तो कर रहा है पर बड़े ही नाज़ से ..........अपनी पत्नी पर गर्वित होते हुए ............और उसे छेड भी रहा है। बच्चे को उससे ज्यादा तवज्जु देने पर

कंदोई ... हलवाई
कुम्हार ... पोटर
कचहरी .... कोर्ट
खोपड़ो ....सिर

Wednesday, July 28, 2010

तलाश

बड़ी भोर घर के बड़े बूड़ों की आँख खुल जाया

करती है । सोचती हूं जीवन मे एक और लम्बे

दिन की तलाश तो इसका कारण नहीं तांकि

गुजरे सुनहरे लम्हों को समेट बटोर इसकी

छाँव मे वे फिर खुल कर उस दिन को जी सके ।

Saturday, July 24, 2010

जीवन चक्र

आज मै अपनी मंझली बिटिया के पास जा रही हूँ ।

उसके अंगना एक नन्ही परी जो आने वाली है ।

चोंकिये नहीं UK , USA में बता दिया जाता है तांकि आप उसी हिसाब से तैयारी करले , नाम सोंच ले ।

भारत वापसी सितम्बर मे ही होगी ।

लैपटॉप तो साथ जा रही है फिर भी शायद अनियमितता रहे सभी पोस्ट ना पढ़ पाऊ और कमेन्ट भी समय पर ना दे पाऊ

मेरा ही नुक्सान है और वो होने नहीं देने का प्रयास रहेगा ।

पचास पचपन साल पहिले जो मेरा बचपन बाबुल की चौखट छूट गया था ।

वो ही तीस - पैतीस साल पहिले मेरे अंगना मेरी बेटियों के साथ लौट आया था ।

अब ये ही मेरी मंझली बिटिया के आँगन लौट आ रहा है । ये ही जीवन चक्र है

बहारे आती थी आती है आती रहेंगी इसी सकारात्मक रवैया के साथ एक लम्बी छुट्टी

Tuesday, July 20, 2010

स्पष्टवादिता

स्पष्टवादिता सत्य तथ्य ईमान पारदर्शिता सभी हाथ मे हाथ लिये साथ साथ घूमा करते है पर देखिये समय की विडम्बना
स्पष्टवादिता के शव को एक भी कन्धा नहीं मिलता है ।

Tuesday, July 13, 2010

सवाल

सयानी बाला के विवाह की जब बात चलती है तो उसे ये ही लगता है कि जीवन मे उसके अरमानो को लूटने ही
आगंतुक आ रहा है ...............जीवन मे ...........
उसका जीवन बदल जाएगा ...........
अस्तव्यस्त हो जाएगा ..........
आशंकाए भी जन्म लेती है ............
पर ऐसा कुछ होता नहीं ...........
आत्म विश्वास और एक दुसरे पर पूरा विश्वास बहुत काम आता है ..........


लूटने जो आया था
लुट कर रह गया
रंग एक का दूसरे पर
फिर चोखा चड गया ।

होनी को कोई
ना टाल है सका
वक्त कंहा रोके
से किसी के रुका ?

आजन्म गिरफ्त की
मिल गयी थी सजा
उन्हें बड़ो की भी
मिली थी पूरी रज़ा ।

अब सैतीस साल
बाद उठा है बवाल
कौन किसकी गिरफ्त मे ?
ये है बड़ा सवाल ।

Saturday, July 10, 2010

ऑक्टोपस

ऑक्टोपस की

भविष्यवाणी पर

सारा विश्व

है पूरा दंग ।


होलैंड दुआ

कर रहा

अब ये क्रम

हो जाए भंग ।

Thursday, July 1, 2010

भाभी ...( पुण्यतिथी )

संयुक्त परिवार मे अपने देवर ननदों से भाभी कहलाने वाली मेरी मां आजन्म भाभी ही रही । झांसी नागौर और हैदराबाद जंहा भी वो रही जगत भाभी ही रही ।
आज उनकी पुण्यतिथी है . १९९९ मे उन्होंने हम से चिर विदा ली पर उनके आदर्श हमारा मार्ग दर्शन करने मे आज भी सक्षम है ।
मेरी भाभी का जन्म जैन परिवार मे राजस्थान के शहर अजमेर मे हुआ । अपने धर्म के प्रति अगाध आस्था थी उनकी । जैन धर्म के बारे मे जो जानते है उन्हें पता ही होगा सय्यम परिग्रह और त्याग की भावना आत्मा है इस धर्म की पर साथ ही वे जातिप्रथा के खिलाफ थी और मानव धर्म सर्वोपरि था उनके लिये ।
गांधीजी विनोवा भावे की विचारधाराओ से वे और बाबूजी जुड़े थे । भूदान को ले उन्होंने विनोवा भावे जी के साथ पदयात्रा भी की थी ।
बाल विधवा और गरीब महिलाओ को आत्म निर्भर बनाने के लिये उन्होंने उस ज़माने मे जो कदम उठाये वे
सराहनीय थे समाज की महिलाओं से उन्होंने अपील की थी कि दोपहर का सिर्फ एक घंटा वे महिलाए उन्हें दे जिन्हें किरोषा कडाई और सिलाई आती है। उन जरूरत मंद महिलाओ कोईस कला मे निपुण कर उनकी बनी चीज़े मैले मे या प्रदर्शनी मे बिकवाना इसके लिये कलेक्टर से मिलना शुल्क हीन स्टाल दिलवाना सब कुछ कर लेती थी वे ।
चलचित्र की तरह आज अतीत के एक एक पन्ने खुलके सामने आ रहे है ......
एक वार की बात है वे हरि जन बस्ती गयी थी उन्हें साफ़ सफाई से रहने और बच्चो को पाठशाला भेजने की बात करने समझाने ।
जब ये बात जैनियों तक पहुची उन्होंने अगले दिन भाभी को मंदिर मे अन्दर जाने की इज़ाज़त नहीं दी वे तो कट्टर थी कभी पूजा पाठ किये बिना आहार ग्रहण नहीं करती थी उन्होंने अन्नशन्न किया तीन दिन पानी भी मुह मे नहीं लिया जब ये बात चीफ मिनिस्टर तक पहुची उन्होंने स्वयं आकर दरवाजा खुलवाया था मंदिर का और पूजा करके ही उन्होंने आहार लिया
था ।
नागौर मे बाज़ार मे व्यापारियों ने सड़क घेर चबूतरे बडवा लिये थे फलस्वरूप यातायात मे दिक्कते होती थी लाख नोटिस
के बावजूद कुछ नहीं हो पा रहा था कलेक्टर के आग्रह पर उन्होंने सड़के चौड़ी करवाने मै भी पूरा साथ दिया था रातो रात बड़े हुए चबूतरो को तुडवा सडक चौड़ी करवाई थी ।
फिर तो नागौर मे लोग आदर से उन्हें झांसी की रानी कहने लगे थे ।
मेरे बाबूजी का जन्म झांसी मे हुआ उन्होंने वकालत की पढाई इलाहबाद से की और दादाजी के कहने पर अपने पुश्तैनी गाँव नागौर मे प्रेक्टिस की । अन्याय वो देख नहीं पाते थे । बाबूजी के बारे मे फिर कभी लिखूँगी विस्तार से ।
मेरे बाबूजी के दर्शन , सादगी और स्वावलंबन से मेरी भाभी बहुत प्रभावित थी । दूसरों के दुखो को बाँटने मे अग्रसर रहने वाली थी मेरी भाभी ।
पचास साल पूर्व की बाते ऐसे याद आ रही है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही ...........
पर बस आज इतना ही .............

Wednesday, June 30, 2010

संशय और मै

जब मैंने लिखना शुरू किया था आज से करीब एक साल पहिले तब अचानक ये संशय कंहा से मेरे पास चला आया । कभी कुछ जीवन मे लिखा नहीं था तो झिझक रहना स्वाभाविक था पर संशय ये आत्म बल क्षिण कर देता है इसी भाव को लेकर कुछ पंक्तिया तब लिखी थी पर उन्हें किसी ने भी नहीं पढ़ा इसीसे फिर पोस्ट करने की जुर्रत कर रही हूँ

संशय
ये अगर
जीवन में
घुस आए

आत्मबल
ध्वंस करके
ही जीवन मे
इसे चैन आए

ठीक नहीं
इसको
ठौर देना
पालना

दृढ रह कर
ठीक रहेगा
इसको सदैव
टालना

इस संशय को अगर पनपने देती तो शायद ये सफ़र शुरू होने से पहिले ही दम तोड़ चुका होता आप सभी का प्रोत्साहन देना मददगार साबित हुआ है ।
बहुत बहुत आभार ।

Tuesday, June 29, 2010

दबंग

जब

शालीन सोच
हट के वज़न
तले दब जाती है

तब

दबंग सोच
खुले आम
रंग जमाती है

Saturday, June 19, 2010

सर्वोपरि

जिनके लिये
स्वार्थ है
सर्वोपरि
उन्हें त्याग व
परोपकार पर
दूसरों को
भाषण देते
सुना है ।

क्या करे
शिकायत
हम सभी ने
तो इन
नेताओं को
अपना अमूल्य
वोट देकर
सहर्ष चुना है ।

Wednesday, June 16, 2010

लज्जा

जब बड़प्पन

सभी मर्यादा लांघ

ओछेपन पर

उतर आता है ।

ओछापन तब

लज्जा से मूक हो

चुल्लू भर पानी मे

डूब मर जाता है ।

Saturday, June 12, 2010

विलीन

जब सभी

गड़े मुर्दे उखाड़ने मे

हो जाते है

तल्लीन ।

ज्वलंत मुद्दे

वर्तमान के

हो ही जाते है

विलीन ।

Tuesday, June 8, 2010

अहम् और २ क्षणिकाए

दूसरों की
तुलना मे
स्वयं को श्रेष्ट
बताने मे
जो हो माहिर ।
अहम् उनके
व्यक्तित्व पर
हावी है
ये बात है
जग ज़ाहिर ।


छोटी बात को
तूल देकर
मै वश
जो करे
व्यर्थ ही
उसे बड़ी ।
उनके साथ
अहम्
रहता है
पनपता है
हर घड़ी ।

Saturday, June 5, 2010

Nature

Hungarian-born electrical engineer who won the Nobel Prize for Physics in 1971 for his invention of holography, a system of lensless, three-dimensional photography that has many applications।
(1900 .....1979 )

Till now man has been up against Nature; from now on he will be up against his own nature

Dennis Gabor

कितनी सही बात कह डाली उन्होंने मानव प्रकृति को लेकर ।

आज हंगेरियन वैज्ञानिक डेनिस गेबर का जन्म दिन है । आज वो हमारे बीच नहीं पर उनकी खोज हमारे लिये एक बड़ी उपलब्धी है ।

Sunday, May 30, 2010

कुंठा

जब मानव अपने

स्वयं के बनाए

कुंठाओं के जाल मे

बुरा फंस जाता है ।

आत्म विश्वास तो

फिर खोता ही है

व्यक्तित्व भी उसका

उभर नहीं पाता है ।

Thursday, May 27, 2010

शौक

बाल की खाल
निकालना होता है
कईयों का शौक
ये भी एक
विकार ही है
कठिन है
लगाना पर रोक ।

शांति प्रिय
मानस कभी
माफी मांगते
ना अलसाए
फलो से लदी
शाखाएँ भी
हमने देखी
झुकती ही जाए ।

Thursday, May 13, 2010

दोषारोपण

जब वातावरण मे

बे बुनियाद

दोषारोपण का

खेल शुरू हो जाता है ।

तब विवेक

सच मानिये

सारे घोड़े बेच कर

सुख की नींद

चैन से सो जाता है ......................

Monday, May 10, 2010

मेरी दादी

मेरी दादी सचमुच मे कहावतो का भंडार थी । हर अवसर पर एक कहावत बोल देती थी । हम बच्चे खेलते खेलते किसी भाई बहिन की शिकायत लेकर जब उनके पास जाते थे वे किसी का कोई पक्ष नहीं लेती थी बस हंस कर कह देती थी ।

क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

बस बड़े माफ़ कर देते थे और खेल फिर शुरू हो जाता था ।

अब जीवन के अनुभवों से जो सीखा है लगता है दो पंक्तिया इसमे अपनी जोड़ ही दे ।


क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

( दो के बीच मे )

तीसरा पक्ष ले बोल पड़े
तभी बडती है बात

Saturday, May 8, 2010

पहेली

जो भाग्य को

सर्वोपरी मानते है

और हालात से

जूझते नहीं

वे जीवन को

पहेली तो मानते है

पर उसे कदापि

बूझते नहीं ।

Tuesday, May 4, 2010

अवसर

मेरे घर के
द्वार की कुंडी
किसी ने आकर
खटखटाई
व्यस्त थी मैंने
भीतर से ही
आवाज़ लगाई
पूछा कौन ?
वो खड़ा था
एकदम मौन ।
फिर बोला
मै हूँ अवसर
लोग मुझे पा
जिन्दगी बनाते है
मुझे खो दे तो
बड़ा पछताते है
मैंने मन ही
मन सोचा
परिचय देने की
ऐसी क्या
आन पडी ?
कई प्रतीक्षा
करते है
इसका हाथ
पर हाथ रख
हर घड़ी ।
मै मंद मंद
मुस्काई
उसे लगा मै
उसे पहचान
नहीं पाई ।
मैंने कंहा
तुम तो सदैव
साथ रहते हो
फिर क्यों
आगंतुक बन
आकर मुझे
छलते हो ?
जो करले
समय का
सदुपयोग
नाम तुम्हारा
होता है ।
जंहा होता है
दुरूपयोग
भाग्य उन्ही का
सोता है ।
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।

Saturday, May 1, 2010

पकड़

भावनाओं पर
सोंच की पकड़
रखनी पडती ही
है बड़ी मज़बूत ।
भाव तांकि
फिसल बहा ना
ले जाए विचारों
की सार्थकता
फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ।

Monday, April 26, 2010

सम्भावना

जब

शांत

सरल
संतुष्ट
चित्त को
कल्पित
सम्भावना
भरमा
जाती है ।

तब

बैचेनी
आतुरता
उत्सुकता
सभी सुप्त
भावनाए
फिर से
गरमा
जाती है ।

Saturday, April 24, 2010

बचाव

जली कटी
बाते सुनना
हर एक के बस
की बात नहीं
वैसे कबीर दास जी
" निंदक नियरे राखिये "
कह गए है
पर इसका
अनुसरण करना
इतना आसान
भी नहीं ।
छींटा कशी गर
बन गया है
आपके अपनों
का स्वभाव ।
चुप्पी और
मुस्कराहट का
कवच पहिन कर
करिये बस आप
अपना बचाव ।
ज्ञानी लोगो
को चाहिए कि
करे निंदा के
पथ का त्याग ।
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।

Monday, April 19, 2010

विवेक

जब उत्तेजना
और विवेक मे
आपस मे ठनी
माहौल मे
छा गयी
तना - तनी
सब बिगड़ गया
बात ना बनी ।
उलझने हो गयी
और अधिक घनी ।
जब कोई प्रयास
काम नहीं आया
टकराव से इन्हें
बचा नहीं पाया
अंतर्मन ने एक
उपाय सुझाया
हमने उत्तेजना
को था सुलाया
विवेक को
फिर से जगाया
अब तथ्य को
सत्य के प्रकाश मे
शिष्टाचार
का
जामा पहनाया
तब कंही जाकर
मनचाहा असर
दिख पाया
और बिगड़ा काम
यूं बन पाया
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।

Friday, April 16, 2010

ज्वालामुखी

हजारो उड़ाने
करनी पडी
है रद्द और
यात्री गण है दुखी
प्रकृति ही
कारण है इसका
आईसलैंड मे
जो भड़का है
एक भयंकर
ज्वालामुखी ।
इससे निकली
राख ने हवा
से हाथ मिला
सारे यूरोप मे
आसमां पर छा
अपना झंडा
बेझिझक होकर
है लहराया ।
इंसान कितना
असहाय है
प्रकृति के आगे
एक वार
फिर प्रकृति ने
ये पाठ है पढाया
विज्ञान ने बहुत
प्रगति की है
ये है स्वीकार
पर प्रकृति की
क्षमता को क्या
कोई भी कर
सकता है नकार?

Wednesday, April 14, 2010

दम्भ

जब दम्भ को
आप मन के
द्वार से ही
स्वयं सयत्न
खदेड़ बाहर
निकाले ।
ताक मे जैसे
बैठे हो रिश्ते
तुरंत आकर
वापस यंहा
अपना वो
घर बसाले ।

Sunday, April 11, 2010

दर्पण

मेरी रचित कविताए
मेरी सोच का है दर्पण
जो अनुभवों ने सिखाया
किया है वो ही अर्पण ।

अपना पूरा जीवन जिसने अपनी घर गृहस्थी को दिया वो एक आम नारी हूँ मै । जो संस्कार मुझे मिले उन्ही की छाया मे अपनी बेटियों की परवरिश की । मेरी दो बेटियाँ अब अपनी गृहस्थी मे व्यस्त है ।एक समय ऐसा था दिन हाथ से फिसल जाते थे तब बच्चे छोटे थे । जीवन की सार्थकता इसी मे है कि हर समय को भरपूर जीना चाहिए । बस ये ही मैंने किया ।
बड़ी बेटी के प्रोत्साहन से ही मै आप लोगो के बीच आई । उसे पूरा विश्वास था कि एक वार लिखना शुरू करूंगी तो लिख ही लूंगी । मेरा नाम सरिता है और मेरे घर का नाम असल मे अपनत्व है जो मैंने अपने ब्लॉग को भी दिया है ।
सादगी , सच्चाई , सय्यम और स्वावलम्बन जिन्दगी को संवार देते है ऐसा मेरा अनुभव है ।
पड़ने का शौक बचपन से था और लिखने का अब इस बासठ साल की उम्र मे पाला है ।
आप
लोगो का जो स्नेह मिला उसकी मै बहुत आभारी हूँ । अब तो लगता है परिवार फिर से बड़ गया है ।
आज इस शतक के साथ ..................
सरिता

Friday, April 9, 2010

मुद्दे

कई वार मुद्दे
स्वयं उठते है
कभी ज़बरन
उठाए जाते है ।
फलस्वरूप एक
आम आदमी
भौचक्का सा
दर्शक ही बन
रह जाता है ।
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
मुद्दे ना सुलझते है
ना सुलझाए
ही जाते है ।
और असली और वो
ज़बरन उठाए मुद्दे
भविष्य की आस पर
और कोई उपाय ना पा
थक हार सो जाते है

Monday, April 5, 2010

नदी के दिल से (१)

रवि का ताप
और हिम पर्वत का
इसे ना सह पाना
निरंतर तप कर
पिघल कर बहना
जल का रूप ले गया
और मुझे जन्म दे गया ।
बरसात व नहरों ने मुझे
अपना दिया भरपूर साथ
मेरा अस्तित्व नहीं
बना ऐसे ही अकस्मात ।
घनघोर घटाओं से
है मुझे असीम प्यार
ये बरस रखती है
मेरा अस्तित्व बरकरार ।
राह मे कई चट्टानें
वाधा बनकर है आती
पर ये आगे बढने से
मुझे रोक नहीं पाती ।
निरंतर तेज़ बहना अब
बन गया मेरा स्वभाव
हतप्रभ है सभी देख कर
मेरा धारा प्रवाह ।
खेतों का लहलहाना
मुझे बहुत भाता है
प्यासे को तृप्त करना
भी मुझे खूब आता है ।
अफ़सोस है कि
कभी -कभी मेरे
कोप से गाँव हो
जाते है ग्रसित ।
बांध सकते है मुझे
ये ही सोच कर
देती है सबको भ्रमित ।
प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल ।
शैल पुत्री से टकराना
यानिं चूर चूर हो जाना ।
या ये कहू कि......... (कहावत है )
अपने मुख की खाना ।

Friday, April 2, 2010

निकाहनामा

दो दिन से हर टी वी चैनेल पर
शोर गया है मच
आयशा का ये निकाहनामा
झूठ है या सच ?

आज ये बात समझ मे
पूरी तरह से है आई ।
बुजुर्गो ने कान पक गए
ये कहावत क्यों बनाई ।

तिल का ताड़ करना
कोई इनसे सीखे ।
ना बाबा ना ये कला
सीख आप क्या कीजे ?

Thursday, April 1, 2010

आशा किरण

तड़पते
तरसते
कुम्हलाते
मुरझाते
घुटते
रिसते
घायल
पीड़ित
अंधकार
मे डूबे
दिल को ।
रोशनी
हौसला
जीवनदान
दे जाती है
एक छोटी
नन्ही सी
आशा किरण ।

Friday, March 26, 2010

उमंग

उमंग का हो साथ
तो लम्बा सफ़र भी
कैसे कटता है हमारा
पता ही नहीं चले ।

कोई भी मुश्किल
टिक नहीं पाती
जोश जो पलता है
इसकी छाँव तले ।

Monday, March 22, 2010

माटी

सुनामी , भूकंप
दुर्घटना , हादसे
सूखा , महंगाई ।
आम आदमी पर
विपदा चारों ओर
से हे घिर आई ।
इन्हीसे तो जुड़ी है
दुःख और वेदनाए ।
कोई आखिर जाए तो
अब किधर जाए ।
व्यथित लोगो के
अविरल बहते आँसू
मेरे दिल को पूरा
भिगोए रखते है
रिश्तों की गर्माहट
और मेरे तपते जज्वात
भी दिल की माटी को
सूखा नहीं रख पाते है ।
शायद इसी लिये
मेरा दिल अपने लिये
और सबके लिये
मात्र धड़कता है ।
कभी टूटता नहीं
तडकता नहीं
गीली माटी का
जो बना है
गीली माटी से
ही ये सना है
ये तो बस जुड़ना
और जोड़ना
जानता है
हर एक दुःख को
अपना मानता है

Thursday, March 18, 2010

बुत

दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश ।

अब समय ने ली है करवट
परिस्थितियाँ भी बदली है
साफ़ सुथरी नीति की जगह अब
दल बदल ने जगह ले ली है ।

अब हर क्षेत्र मे मिलता है
आरक्षण का बोल बाला
और चारों ओर हम देखते है
बस घौटाला ही घौटाला ।

नैतिकता को रख
ताक़ , दलित नेता
दौलत प्रदर्शन से
क्यों कर घबराए ?

लक्ष्मी जी की तो
असीम कृपा है उन पर
असामाजिक तत्व भी
पूरा साथ निभाए ।

दलित भी बुत बने
सब कुछ है देख रहे
उनके दलित नेता के
बुत जो है बन रहे ।

Friday, March 12, 2010

जालसाज़

जालसाजी भी एक अच्छा
खासा धंधा बन गयी है
बीमारी की तरह अब ये
चारो और फ़ैल गयी है ।

झांसा देने वाले लोग तो
होते है बड़े ही शातिर
आम आदमी शिकार बनता
लालच , अज्ञान के खातिर ।

खुदा की नज़रे भी
क्यों नहीं पड़ती इन पर ?
कंहा पहुचेंगे ये ऐसी
भटकी राह पर चलकर ?

इंसान ना साथ कुछ लाया है
ना ही साथ ले जाता है ।
ये साधारण सी बात भी क्या
जालसाज़ समझ नहीं पाता है ?

Monday, March 8, 2010

कल्पना

कल्पना ने
यथार्थ की
ज़मी पर
पांव टिका
जब जन्म ले
आकार लिया ।
स्वतः ही तब
चंहु ओर से
मेरा मनोबल
जुट आया
और फिर उसे
साकार किया ।

Saturday, March 6, 2010

पथिक

चलते चलते एक
थका हारा पथिक
पसीना सुखाने
तनिक सुस्ताने
नीम के घने
पेड़ की छांव तले
था थम गया ।
अब आलस
और झपकी ने
आगे बढने का
मंसूबा था उससे
हर लिया ।
इतने मे हवा
का एक सुहावना
हल्का झौका
कंही से आया
झट से उसने
पथिक का बहता
पसीना सुखाया
लगा जैसे उसे
थोडा थपथपाया
कुछ फुसफुसाया
और फिर बिना
पीछे मुड़े
वेग के साथ
आगे बह गया ।
पथिक को मानो
गति ही जीवन है
ये सन्देश वो
अनजाने ही
था दे गया ।
अब आलस छोड़
नये होश और
जोश के साथ
पथिक तरो ताज़ा हो
अपनी मंजिल
की ओर रफ़्तार
के साथ आगे
बढ गया ।

Wednesday, March 3, 2010

चित - चोर

मेरे जीवन मे आया
है एक चित चोर
बिना देखे उसे अब
होती नहीं मेरी भोर ।

सात समुंदर पार है मुझसे
फिर भी हंसकर मुझे लुभाए
देखते ही दिल बल्लियों उछले
धड़कने भी बड़ ही जाए ।

इसके साथ मेरी हरकते भी
होती जारही है बचकाना
अच्छा लगता है आजकल
उससे बाते करते तुतलाना ।

इसने दुनियां मे आते ही
सभीको मोह मे है फसाया
मेरा दिल बंद इसकी मुट्ठी मे
नानी बनने का है सुख पाया ।

हम नाना - नानी की
आँखों का है ये तारा
सदा खुश रखे और रहे
ये ही आशीष हमारा ।

Friday, February 26, 2010

रखवाले

इंसान ही इंसान का
सबसे बड़ा दुश्मन है
सच मानिये इसे
ये नहीं कोई उपहास ।
गवाह है हमारे
सभी ग्रन्थ महाभारत
रामायण , गीता और
भारत का अपना इतिहास ।
आदिकाल मे आदमी
कंदराओ, गुफ़ाओं मे भी
सुरक्षित महसूस करता था ।
अपने दुश्मन को आसानी से
पहचान , परख सकता था ।
और आज का आलम
ये है कि हमारे
तथाकथित सभ्य चुने नेता
अपनो के बीच भी
अपने को सुरक्षित नहीं
महसूस करते है ।
इसीलिये तो स्वयम
की सुरक्षा के लिए
ब्लैक कमांडोज़* की
डीमांड* रखते है ।
आम आदमी की जान
की , नहीं रह गयी
अब कोई कीमत ।
हादसों मे मरते रहते
है यूं ही ये अनगिनत ।


सोचती हूँ .......
ऐसे नेता

जिन्हें अपनी ही जान के
पड़े हो लाले ।
क्या वे काबिल है ?
बनने के लिए
देश के भविष्य
के रखवाले .........................

अभी - अभी बजट पेश होते समय देखा है जो नज़ारा ।
इस तरह की नेतागिरी से तो विश्वास है उठा हमारा । ।

*क्षमा करे इन अंग्रेज़ी शव्दों के प्रयोग के लिये

Monday, February 22, 2010

बेटियाँ

एक समय आता है जब
छूटता है बाबुल का आँगन ।
नया क्षितिज पाती है बेटियाँ
मिले जब इन्हे मनभावन ।

उनके अब अपने सपने है
और है एक नया उल्हास ।
दूर तो ये है जरुर हमसे
पर पाती हूँ सदा मन के पास ।

( बेटी को पराये धन की संज्ञा तो नही दूंगी मै )

पर होती है ये धरोहर ।
अपने धरोंदे को खूब
संवारने में जुट जाती है
बनाना जो है इसे मनोहर।

( बरसों पहले मेरा आँगन छूटा, अब छूटा इनका )

ये तो है जीवन धारा ।
खुश रहे सदैव बेटियाँ
अपने - अपने अंगना में
ये ही है आशीष हमारा ।


हमारी बगियाँ मे खिले फूल है बेटियाँ
अब साजन का घर महकाएंगी
जब भी खुशबू की बात चलेगी
इनकी याद आ , हमें खूब भरमाएगी ।


शिक्षा संस्कार नम्रता और दुलार
इसी का दिया हमने इन्हें उपहार ।
अब बस एक माँ दुआ करती है
थम जाए इनके अंगना, आके बहार ।

Friday, February 19, 2010

आईना

मेरे कमरे के आईने पर
जब भी नज़र डालूँ मै
हर बार एक बदली सी
शकल नज़र आती है ।

जो मुझे चौंका जाती है
मेरी अपनी समझ
स्वयं को पहचानने मे
यूं उलझ सी जाती है ।

अखबार में पढ़े गए
समाचार रोज़ ही
मेरी भावनाओं से
खिलवाड़ करते है ।

कभी मुस्कान देते है
तो कभी देते है उदासी
कभी शांति देते है
है तो कभी बदहवासी ।

कभी सारी वेदना
मुझमे सिमट आती है
अपनी खुशियाँ भी इनके
तले दफ़्न हो जाती है ।

आईना तो जो देखे
वो ही है ये दिखाता ।
मेरे चेहरे के बदलते भाव
ये तो है भांप ही जाता ।

Saturday, February 13, 2010

सितम

इंसान पर जब कभी
हैवानियत का रंग चढ़ जाए ।

अपनी सारी हदों को
बेखौफ वो पार कर जाए ।

चिंगारी को हवा दे
आग लगाने मे ये माहिर।

इनकी नियत मे खोट है
ये तो अब जग ज़ाहिर ।

कंही पर बम विस्फोट
तो कंही करे साजिश ।

क्या पा लेंगे ये हैवान
पैदा करके आपस मे रंजीश ।

ऊँच - नीच का अब
इन्हें होश भला कहाँ ?

अपने कदमो तले उन्हें
लगता है सारा जंहा ।

ये गफलत इन दरीन्दो की
ना जाने कब होगी ख़तम ?

कब इंसानियत की राह ये चलेंगे
कब ? कैसे ? खत्म होंगे इनके ये सितम ?

Thursday, February 11, 2010

पर्यावरण

पर्यावरण की समस्या को
ले , बड़े देश आँखे लेते है मीच
बड़े सम्मेलन निष्कर्ष तक नहीं
पहुचते , भंग होते अधबीच ।


जंगल काटे -शहर बसाए
आगे बड़ने की होड़ मे
कभी ना देखा हमने
तब अपने दाये - बाये ।


लेकर प्रगति की आड़ ।
पहाड़ नदी नालों
सभी से किया हमने
जी भर खिलवाड़ ।


प्रकृति ,जब भी ज्यादती होती
तुम देती हो एक दस्तक ।
तुम्हारी जगाने वाली प्रवृति
के आगे हम सभी नतमस्तक ।


अब आया समय अब तो
हम जगे और जगाए
सब मिलकर वृक्ष लगाए
पानी भी व्यर्थ ना बहाए ।


जरूरत है जागरूकता
जन - जन मे लाने की
भरसक कोशिश करनी है
उर्जा भी तो बचाने की ।


सरकार पर ही सब छोड़ दे
ये तो लगता उचित नहीं
आइये हम भी सहयोग दे
मेरी नज़र मे ये है सही ।

इस अभियान मे आप सब मेरे साथ है
ऐसा मेरा अटूट विश्वास है .......................................

Sunday, February 7, 2010

एक बात

स्वाभाविक तौर पर विचारो का मिलन
ये एक बात है
स्वार्थ हेतु विचारो का मिलन
ये अलग बात है ।
सही बातों का जम कर समर्थन देना
ये एक बात है
खुश करने के लिए हां मे हां मिलाना
ये अलग बात है ।
हित की जो सोंचे वो ही सच्चा हितेषी
ये एक बात है ।
दिल को खुश करने वाला ही भला लगे
ये अलग बात है ।


आज का सत्य ये है |


एक बात किनारे कर दी गई है |

और

अलग बात सब पर हावी हो गई है ।

Wednesday, February 3, 2010

गूंगा

मेरे जटिल
उलझे भावो को
जब शव्द
बड़ी सहजता
सरलता का
जामा पहना
तुरंत , सादर
गंतव्य तक
पंहुचा आते है ।
तो मुझे ये
विवश कर
रहे है ये
सोचने पर कि
कभी सीधी
सच्ची सरल
बात पहुचाने
के समय
ये शव्द
कंहा क्यों और
कैसे अद्रश्य
हो जाते है ?
हम निरर्थक
दूंड़ते रहते
है शव्दों को
और दूर दूर
तक इनका निशा
तक नहीं मिलता
और यों हमारे
सारे प्रयास
असफल
हो जाते है ।
और उस समय
और कोई रास्ता
नहीं पा
बेबस हो
हम , गूंगा
होने पर
मजबूर हो
जाते है



Thursday, January 28, 2010

बहार

हमेशा वर्तमान
ही रहे अगर
जीवन में हमारा
केंद्र बिन्दु

शायद इस से
भविष्य कभी नहीं
बनेगा चिंता का
विषय , मेरे बंधू

जब है आप व्यस्त
तो समय कंहा
कि बैठ करे नाहक
चिन्ता , विचार

आज सुधारिये
बोइये , सींचीये
तब ही तो आएगी
जीवन मे कल बहार

Sunday, January 24, 2010

सैलाव ( अतीत से ) २

स्वतंत्र भारत मे
ही मै जन्मी
बात है तब की
जब थी मै नन्ही ।
जबसे आया था मुझे होश
चारों ओर पाया था
एक नया ही जोश ।
कांग्रेस के हाथ थी तब
सत्ता की बागडोर ।
पंच वर्षीय योजनाओं का
शुरू हुआ था नया दौर ।
मुझे अच्छी तरह याद है
जब भी हमारे छोटे
गाँव नागौर मे
कोई भी नेता आते थे।
मेरे बाबूजी व सभी कांग्रेसी
चरखे पर सूत
कातने जुट जाते थे।
फिर कते सूत की लच्छीया
बनाई जाती थी ।
और हार की तरह सम्मान मे
श्रद्धेय नेताओं के
गले मे पहनाई जाती थी ।
पाठशालाओं मे भी
सूत कातना सिखाया जाता था ।
आजादी अंहिसा के मार्ग
पर चल कर ही मिली
ये बड़े गर्व से बताया जाता था ।
ईमानदारी , त्याग की भावना
वो देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश
जो नेताओं की
रग रग मे बहता था ।
वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।

Thursday, January 21, 2010

भूकंप

प्रक्रति के कोप का ओफ़
हैटी मे ऐसा देखा नज़ारा ।
पलक झपकते ही लाखों
निवासी हो गए बेसहारा

भविष्य के गर्भ मे है क्या
कौन है जो जान पाए ?
इतनी जान हानि देखी कि
ठंड मे भी पसीने से नहाए ।

ऐसे हादसों से कैसे बचे ?
सुझाए वैज्ञानिक ! कोई उपाय
साधारण मानव तो पा रहा
ऐसी स्थिती मे अपने को असहाय


Friday, January 15, 2010

अतीत से ( १ )

लगभग पचपन साल
पहले की है ये बात
कड़ाके की सर्दी
की थी वो रात ।
हम बच्चे आग
रहे थे ताप
सुनी हमने तब
पगों की चाप ।
हम सभी मचा
रहे थे धमाल
मुहं से भाप निकलने का
देख रहे थे हो
हतप्रभ , कमाल ।
एक छोटी लडकी
मेरी ही हम उम्र
धर्मशाला के हमारे
कमरे के द्वार पर आई ।
कुछ ठिठकी
कुछ सकपकाई ।
मैंने उसे अंदर बुलाया ।
दोस्ती का हाथ
था
बेझिझक
उसकी और बढाया ।
वो थी वंहा के
चौकीदार की बेटी ।
आग तापने
सिमटी , सकुचाई
उकडू
हो आग के कूंडे
के पास आ बैठी ।
हमने देखा लालटेन की
रोशनी मे उसका मुखड़ा ।
हाथ मे उसके था
बाजरे की सूखी
मोटी रोटी का
एक छोटा टुकड़ा ।
वो उसे खा नहीं रही थी
बस चूसे ही जा रही थी ।
मै भी टकटकी लगाए
उसे देखे जा रही थी ।
वो ऐसा क्यों कर रही ?
पूछने पर उसने
हमें था बताया ।
माँ है बीमार
तेज़ है बुखार ।
आज चूल्हा नहीं जला
बस , बासी रोटी से ही
है काम आज चला ।
माँ ने कहा है
आज इतना ही बस -
और नहीं मिलेगा ।
फिर सयानेपन से
उसने था समझाया ।
खाने से टुकड़ा
ज्यादा नहीं चलेगा ।
धीरे - धीरे चूसने से
सूखा टुकड़ा
जल्दी नहीं गलेगा
और खूब देर
तक चलेगा ।


कुछ बाते हमारे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती है .......
और ये रचना इस बात का ज्वलंत उदाहरण है .......................

Thursday, January 14, 2010

शुभकामनाएँ

मकर संक्रांति की सभी , शुभकामनाएँ मेरी स्वीकारे !
और
मिलकर समाज की सभी कुरीतियों को हम धिक्कारें !

Wednesday, January 13, 2010

अनुभव

सदा स्पष्ट बोलना
अपने जीवन मे
पड़ता है कभी
बड़ा ही भारी

ऐसे माहौल मे
घुलना - मिलना दुभर
जंहा आपकी सोंच
हो दूसरों से न्यारी ।

Monday, January 11, 2010

भवसागर

अनुभवों की नैया
पर सवार हो
जब मनुष्य
अपने स्वयं के
हाथों मे विश्वास के
चप्पू संभाले
भवसागर मे उतरे ।
बाल भी बांका
ना हो उसका
डूबने ,भटकने का
भी अब डर नहीं
हर कठिनाई से वो
संचित अनुभवों
और अमिट विश्वास
का , लेकर सहारा
इस भवसागर से
सहजता से उबरे ।

Wednesday, January 6, 2010

सपना

सपना देखते देखते
ही नींद टूटी ।
लगा आज देर
से मै उठी ।
जल्दी जल्दी काम
मे , मै जुट गई ।
सपना क्या था
ये भी भूल गई ।
पर अन्तः करण मे कंही
ये एहसास था ।
बड़े ही हल्केपन का
आभास साथ था ।
लग रहा था जैसे
सारा जंहा ही
है बस अपना ।
दुआ कर रही कि
सभी को आए
ऐसा ही सपना ।

Tuesday, January 5, 2010

उद्देश्य

खुशहाली रहे
सदा जीवन मे
उद्देश सभी का
बस ये एक ।

पर लक्ष्य प्राप्ति के
मार्ग होते ही है
सदैव भिन्न - भिन्न
अतः अनेक ।


सुख - शान्ति
समृद्धि की
सभी करते है
मंगल कामना ।

यत्न करे ।
सही राह पकड़े ।
सफल रहे ।
मेरी ये भावना ।

Friday, January 1, 2010

धोखा

धोखा खा कर , कष्ट तो अवश्य होता है
पर क्या होगा हासिल , अगर करे गिला ।
भरोसा सब पर तो नहीं कर सकते यूँ ही
कम से कम ये तो सीखने को हमें मिला ।