कल की चिंता हो क्योंकर उन्हें
जो आज संवारने मे पूरे जुटे है ।
मेहनत पर जो करे विश्वास
उनके सपने अवश्य पूरे हुए है ।
Thursday, December 31, 2009
Saturday, December 26, 2009
सन्देश व नव वर्ष की शुभकामनाएँ
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
ठोकर लगी , तनक लडखडाए
तो क्या ? तुरंत संतुलन बनाते
कदम आगे बढाए ,भय भगाए
होगा उस समय ये ही सही ।
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
ठोकर लगी , तनक लडखडाए
तो क्या ? तुरंत संतुलन बनाते
कदम आगे बढाए ,भय भगाए
होगा उस समय ये ही सही ।
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
Saturday, December 19, 2009
प्रश्न
नदी ने पूछा सागर से
इतना उफान ?
इतने अशांत ?
इतना खारापन ?
इतना भारीपन ?
इतनी गहराई ?
सागर भीने से मुस्काया
बोला , इतनी जिज्ञासा ?
इतने प्रश्न ?
क्या कभी सोचा है ?
चाँद सूरज करते
मुझसे क्यों खेल ?
लहरे क्यो चाहे
तटो से करना मेल ?
एक बात और
जो मेरे भी समझ
मे नही आई ?
नदी बताओ
इतने संशय फ़िर भी
तुम क्यो आकर
मुझमे ही समाई ?
इतना उफान ?
इतने अशांत ?
इतना खारापन ?
इतना भारीपन ?
इतनी गहराई ?
सागर भीने से मुस्काया
बोला , इतनी जिज्ञासा ?
इतने प्रश्न ?
क्या कभी सोचा है ?
चाँद सूरज करते
मुझसे क्यों खेल ?
लहरे क्यो चाहे
तटो से करना मेल ?
एक बात और
जो मेरे भी समझ
मे नही आई ?
नदी बताओ
इतने संशय फ़िर भी
तुम क्यो आकर
मुझमे ही समाई ?
Monday, December 14, 2009
मेरी सोंच
जब विचारो मे न हो
कोई ताल मेल और
न हो धैर्य और समय
एक - दूसरे की
बात सुनने , समझने का
तो सम्बन्ध ऐसे मे
बनाए रखना हो कर
रह जाता है महज
औपचारिक ।।
लेकिन
जंहा हो एक दूसरे को
को समझने की ललक
और विचारो मे भी ताल मेल
वंहा समय भी निकलता है
और भावनाए भी आ
जुड़ती है हमसे , फिर
संबंधो मे घनिष्टता
पनपना हो ही जाता है
स्वाभाविक ।।
कोई ताल मेल और
न हो धैर्य और समय
एक - दूसरे की
बात सुनने , समझने का
तो सम्बन्ध ऐसे मे
बनाए रखना हो कर
रह जाता है महज
औपचारिक ।।
लेकिन
जंहा हो एक दूसरे को
को समझने की ललक
और विचारो मे भी ताल मेल
वंहा समय भी निकलता है
और भावनाए भी आ
जुड़ती है हमसे , फिर
संबंधो मे घनिष्टता
पनपना हो ही जाता है
स्वाभाविक ।।
Tuesday, December 8, 2009
आशा किरण
मेरे बाबूजी जो अब
नही मेरे साथ
आशा और विश्वास
की दी थी उन्होंने
मुझे अनमोल सौगात ।
बचपन मे बांधी थी
मेरी चिट्टी उंगली से
एक अदृश्य डोर ।
दूसरे किनारे था
आशा किरण का छोर ।
जीवन मे निराशा,उलझने
नही डाल पाती घेरा ।
आशा , विश्वास जो करते
है सदा यँहा बसेरा ।
जँहा हों दृडता
कुछ करने की लगन ।
लक्ष्य को पाने
हों जाए जो मगन ।
बदकिस्मती भी थक -हार
उड़न छू हों जाती है ।
और फिर मंजिल
साफ़ पास नज़र आती है ।
नही मेरे साथ
आशा और विश्वास
की दी थी उन्होंने
मुझे अनमोल सौगात ।
बचपन मे बांधी थी
मेरी चिट्टी उंगली से
एक अदृश्य डोर ।
दूसरे किनारे था
आशा किरण का छोर ।
जीवन मे निराशा,उलझने
नही डाल पाती घेरा ।
आशा , विश्वास जो करते
है सदा यँहा बसेरा ।
जँहा हों दृडता
कुछ करने की लगन ।
लक्ष्य को पाने
हों जाए जो मगन ।
बदकिस्मती भी थक -हार
उड़न छू हों जाती है ।
और फिर मंजिल
साफ़ पास नज़र आती है ।
Sunday, November 29, 2009
स्वर्ग - नर्क
दुनिया हर क्षण
करवट बदल रही
बस बीते जाए
सुबह और शाम ।।
समय का अभाव है
जान लीजिये भई
बात हो गयी
है अब ये आम ।।
दौड़ - भाग मे
सभी लगे
निज स्वार्थ मे है
आज सब तल्लीन ।।
पर , की सोचने
के लिए दिल कंहा ?
भलमनसाहत होगई
है आज विलीन ।।
आज मानव हो
गया है जूझते-जूझते
परस्थितियों से
इतना निराश ।
कोई मदद करेगा
आगे बड़कर
ये भी करता नही
वो आजकल आस ।
ऐसे मे अनायास
कोई सहारा देने
अगर अपने हाथ
उसकी ओर बढाए ।।
कुछ क्षण भौचक्का सा
स्वप्न है या हकीकत ?
इस पशोपेश मे ,यकीन
करने मे समय लगाए ।।
सोच - विचार मे
भी आगया है
बहुत ही , अब फर्क ।।
मरने के बाद
किसने देखा है ।
अपने व्यवहार से
इंसान बनाता है
यही पर स्वर्ग
और यंही पर नर्क ।।
करवट बदल रही
बस बीते जाए
सुबह और शाम ।।
समय का अभाव है
जान लीजिये भई
बात हो गयी
है अब ये आम ।।
दौड़ - भाग मे
सभी लगे
निज स्वार्थ मे है
आज सब तल्लीन ।।
पर , की सोचने
के लिए दिल कंहा ?
भलमनसाहत होगई
है आज विलीन ।।
आज मानव हो
गया है जूझते-जूझते
परस्थितियों से
इतना निराश ।
कोई मदद करेगा
आगे बड़कर
ये भी करता नही
वो आजकल आस ।
ऐसे मे अनायास
कोई सहारा देने
अगर अपने हाथ
उसकी ओर बढाए ।।
कुछ क्षण भौचक्का सा
स्वप्न है या हकीकत ?
इस पशोपेश मे ,यकीन
करने मे समय लगाए ।।
सोच - विचार मे
भी आगया है
बहुत ही , अब फर्क ।।
मरने के बाद
किसने देखा है ।
अपने व्यवहार से
इंसान बनाता है
यही पर स्वर्ग
और यंही पर नर्क ।।
Wednesday, November 25, 2009
रिश्ते ( २ )
कुछ रिश्ते महज
नाम के होते है रिश्ते ।
और कुछ होते है
सिर्फ़ - दिखावे के रिश्ते ।
मेरी सोच की दुनिया मे
इनका कोई अस्तित्व नही
ऐसे रिश्ते निभाना
मेरी नज़रो मे
आम व्यक्ती के लिए
मुमकिन हो सकता नही।
कभी - कभी कुछ
अनजान रिश्ते बन जाते है ।
जिन्हें नाम देने मे हम
अपने आपको असमर्थ पाते है ।
जो रिश्ता आपके
दुःख दर्द का रहा हो साथी ।
जिस रिश्ते ने आपकी
हर भावना है मूक हो बांटी ।
ऐसे रिश्ते को किसी
संज्ञा ,विशेषण की
चाह नही होती ।
अनमोल होते है ये रिश्ते
इनकी कोई कीमत नही होती ।
मानवता का रिश्ता
जो उत्साह , लगन से निभाए ।
मेरी नज़रो मे वो रिश्ता
सर्वोपरी हो जाए ।
वैसे आस्था विश्वास की
नींव पर बने रिश्ते
आड़े समय काम आकर
मुश्किल से हमे उभारते है।
ख़राब समय ऐसे मे कैसे ?
अछूता निकल जाता
हम देखते दंग रह जाते है ।
सतर्क रहना है हमें , अवहेलना
तिरस्कार ना आपाए
हमारे व्यवहार से
रिश्तो के बीच कभी ।
बड़ो के लिए हो दिल मे
मान - सम्मान , अपनत्व
छोटो के प्रति प्यार व क्षमा -भाव
निभते फिर रिश्ते आसानी से सभी ।
नाम के होते है रिश्ते ।
और कुछ होते है
सिर्फ़ - दिखावे के रिश्ते ।
मेरी सोच की दुनिया मे
इनका कोई अस्तित्व नही
ऐसे रिश्ते निभाना
मेरी नज़रो मे
आम व्यक्ती के लिए
मुमकिन हो सकता नही।
कभी - कभी कुछ
अनजान रिश्ते बन जाते है ।
जिन्हें नाम देने मे हम
अपने आपको असमर्थ पाते है ।
जो रिश्ता आपके
दुःख दर्द का रहा हो साथी ।
जिस रिश्ते ने आपकी
हर भावना है मूक हो बांटी ।
ऐसे रिश्ते को किसी
संज्ञा ,विशेषण की
चाह नही होती ।
अनमोल होते है ये रिश्ते
इनकी कोई कीमत नही होती ।
मानवता का रिश्ता
जो उत्साह , लगन से निभाए ।
मेरी नज़रो मे वो रिश्ता
सर्वोपरी हो जाए ।
वैसे आस्था विश्वास की
नींव पर बने रिश्ते
आड़े समय काम आकर
मुश्किल से हमे उभारते है।
ख़राब समय ऐसे मे कैसे ?
अछूता निकल जाता
हम देखते दंग रह जाते है ।
सतर्क रहना है हमें , अवहेलना
तिरस्कार ना आपाए
हमारे व्यवहार से
रिश्तो के बीच कभी ।
बड़ो के लिए हो दिल मे
मान - सम्मान , अपनत्व
छोटो के प्रति प्यार व क्षमा -भाव
निभते फिर रिश्ते आसानी से सभी ।
Friday, November 20, 2009
रिश्ते ( १ )
कई रिश्ते
हलके से लगे
कई रिश्ते लगे
बड़े ही भारी ।
क्या रिश्तो मे
वजन होता है ?
कदापि नही ,महज़
सोच है हमारी ।
जंहा हो अपनेपन
का आदान प्रदान
वंहा ये खुल कर
श्वास ले , जी लेते है
अतः पनप जाते है ।
जंहा हो महज
दिखावा , बनावट
वंहा बड़ी घुटन , तड़पन
महसूस कर ये
दम तोड़ जाते है ।
अपनत्व से भरे रिश्ते
बड़े दिल के करीब
और सुहावने होते है
इसमे कोई शक ही नही ।
त्याग , प्यार और धैर्य मे
बड़ी शक्ती होती है
हर रिश्ते को निभाने की
ये बात भी लगती है
सतही तौर पर पूर्णतः सही ।
हलके से लगे
कई रिश्ते लगे
बड़े ही भारी ।
क्या रिश्तो मे
वजन होता है ?
कदापि नही ,महज़
सोच है हमारी ।
जंहा हो अपनेपन
का आदान प्रदान
वंहा ये खुल कर
श्वास ले , जी लेते है
अतः पनप जाते है ।
जंहा हो महज
दिखावा , बनावट
वंहा बड़ी घुटन , तड़पन
महसूस कर ये
दम तोड़ जाते है ।
अपनत्व से भरे रिश्ते
बड़े दिल के करीब
और सुहावने होते है
इसमे कोई शक ही नही ।
त्याग , प्यार और धैर्य मे
बड़ी शक्ती होती है
हर रिश्ते को निभाने की
ये बात भी लगती है
सतही तौर पर पूर्णतः सही ।
Friday, November 13, 2009
फ्रेम
सत्ता की ना हो चाह ,
रखे ,जन - हित मे
वो अपना पूरा ध्यान
कुछ करने का बस हो जज्बा
दिल मे , और देश से हो
उनका अगाध प्रेम । ।
कैसी आशाये ले बैठी ?
अब वो त्याग , समर्पण कंहा ?
वैसे नेता तो टंग चुके है
और शोभा बड़ा रहे है
सरकारी भवनों की बस
दीवारों पर , बनके फ्रेम । ।
रखे ,जन - हित मे
वो अपना पूरा ध्यान
कुछ करने का बस हो जज्बा
दिल मे , और देश से हो
उनका अगाध प्रेम । ।
कैसी आशाये ले बैठी ?
अब वो त्याग , समर्पण कंहा ?
वैसे नेता तो टंग चुके है
और शोभा बड़ा रहे है
सरकारी भवनों की बस
दीवारों पर , बनके फ्रेम । ।
Sunday, November 8, 2009
खटास
रेड्डी भाइयो का
रूठना,धमकाना
और बी जे पी के
दिग्गजों का उन्हें
मनाना,समझाना
मुख्य - मंत्री का
टूट जाने की हद तक
समझौते के नाम पर
झुक जाना
कर्नाटक को क्या
पूरे देश को ही
स्तब्ध कर गया है ।
आज पेपर पढ़ने
के साथ - साथ
बासी दूध की बनी
हम पी रहे थे चाय ।
इतने मे घंटी बजी
ताजा दूध आया
मैंने स्टील की भगौनी
पानी से धो - खंखार
झट से उसमे दूध
उबलने चढाया ।
अरे ये क्या हुआ ?
दूध तुंरत फट गया ।
धुली भगौनी
और था ताज़ा दूध
सोचने लगी फिर
ये क्या हुआ चक्कर ?
कंही माहौल मे
फ़ैली राजनीति की
खटास का तो दूध पर
नही था ये असर ?
रूठना,धमकाना
और बी जे पी के
दिग्गजों का उन्हें
मनाना,समझाना
मुख्य - मंत्री का
टूट जाने की हद तक
समझौते के नाम पर
झुक जाना
कर्नाटक को क्या
पूरे देश को ही
स्तब्ध कर गया है ।
आज पेपर पढ़ने
के साथ - साथ
बासी दूध की बनी
हम पी रहे थे चाय ।
इतने मे घंटी बजी
ताजा दूध आया
मैंने स्टील की भगौनी
पानी से धो - खंखार
झट से उसमे दूध
उबलने चढाया ।
अरे ये क्या हुआ ?
दूध तुंरत फट गया ।
धुली भगौनी
और था ताज़ा दूध
सोचने लगी फिर
ये क्या हुआ चक्कर ?
कंही माहौल मे
फ़ैली राजनीति की
खटास का तो दूध पर
नही था ये असर ?
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